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२०० ] चरणानुयोग
सुभिगंधे, ण डुभिगंधे,
ण तित्ते, ण कए, ण कसाए, ण अंबिले, न महरे, कक्खडे, ण णि ण लुक्
काऊ, ण कहे णसंगे, ण इत्यो ण पुरिसे, ण रहा।
मचए, ण गरुए, ग लहुए, न सोए, ण उण्हे,
परिणे सणे ।
उधमरण विज्जति ।
अरूवो सत्ता ।
अपवस्स एवं मंत्थि ।
सत्यवक्ता, असत्यवक्ता अर्शनसत्या दर्शन असल्या
सेण सद्दे, हवे, ण गंधे, ग रसे, ण फासे इच्वेतानंति । -आ. सु. १, अ. ५, उ. ६, सु. १७६
सच्चा असच्चा दंसणसरचा दंसणअसच्चा
२१८. सारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-
सामी, नाममेव
असच्चे नाममेगे सच्चविट्ठी, अमेि
सुसीला दुम्सीला सुवंसणा कुदंसणा२६६. चतारि पुरिसजाया पणसा, तं जहा -- सुट्टी
सुई नाममेगे मुवी.
असुई नायमेगे सुहविट्ठी,
असुई नाममेगे असुविट्ठी 1
-अपं. अ. ४, उ. १, सु. २४१
सुद्धा असुद्धा सुद्ध दंसणा असुद्ध बंसणा३०० पारि पुरिवाया पता जहासं
सुखे नामभेगे सुद्ध सुद्धे माममे असुद्ध
असुद्ध नामभेगे सुद्धे, मसू नामगेगे अमुड़े ।
- ठाणं. अ. ४, उ. १, सु. २३२
न वह सुगन्ध युक्त है, न तिक्त ( तीखा है, न कडुवा है, न कसैला है, न खट्टा है, न मीठा है, न कर्कश है, न मृदु है, न गुरु है, न लघु है, न ठंडा है, न गर्म है, न चिकना है, न रूखा है,
सूत्र २६७-३००
नावान् है न जन्मधर्मा है, संगरहित है, न स्त्री है, न पुरुष है, न नपुंसक है ।
है ( है ह चैतन्यमय जान है उसका दोध कराने के लिए कोई उपमा नहीं है । वह अरूपी (अमूर्त) सत्ता है । वह पदातीत अपद है। उसका बोध कराने के लिए कोई पद नहीं है ।
वह न शब्द है, न रूप है, न गन्ध है, न रस है और न स्पर्श है। बस, इतना ही है ।
सत्यवक्ता, असत्यवक्ता दर्शनसत्या दर्शन असत्या२६८. चार प्रकार के पुरुष हे हैं, यथा
एक पुरुष सस्य बता है और उसकी दृष्टि-दर्शन भी सत्य है, एक पुरुष सत्यवक्ता है किन्तु उसकी दृष्टि-दर्शन असत्य है, एक पुरुष असत्यवक्ता है किन्तु उसकी दृष्टि-दर्शन सत्य है। एक पुरुष असत्यवक्ता है और उसकी दृष्टि-दर्शन भी असत्य है ।
सुशील और दुश्शील, सुदर्शन और कुदर्शन२६६. चार प्रकार के पुरुष व हे हैं, यथा
एक पुरुष अच्छे स्वभाववाला है और उसकी दृष्टि-दर्शन भी अच्छा है,
एक पुरुष अच्छे स्वभाववाला है किन्तु उसकी दृष्टि-दर्शन मच्छा नहीं है,
- ठाणं . ४, उ. १, सु. २४१ दर्शन भी अच्छा नहीं है ।
एक पुरुष अच्छे स्वभाववाला नहीं है किन्तु उसकी दृष्टिदर्शन अच्छा है।
एक पुरुष अच्छे स्वभाववाला नहीं है और उसकी दृष्टि
शुद्ध और अशुद्ध शुद्ध दर्शनवाले और कुदर्शनवाले. ३००. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथा
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एक पुरुष शुद्ध हैं और उसकी दृष्टि-दर्शन भी शुद्ध है, एक पुरुष शुद्ध है किन्तु दृष्टि शुद्ध नहीं है,
एक पुरुष अशुद्ध है किन्तु उसकी दृष्टि शुद्ध है,
एक पुरुष अशुद्ध है और उसकी दृष्टि भी अशुद्ध है।