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________________ पत्र २८२-२८३ अभ्यतीयियों की मोक्ष प्ररूपणा और उसका परिहार वर्शनाचार १६१ जे मिष संपसारयं पसंसद पसंसंतं वा साइजह । जो भिक्षु (असंयतों को) आरम्भ के कार्यों का निर्देशन करने वाले की प्रशंसा करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घायं। वह भिक्षु गुरु पातुर्मासिक परिहार प्रायश्चित्त स्थान का -नि. उ. १३, सु. ४५-६२-(७७) पात्र होता है। अण्ण उत्थियाण मोषखपरूवणा परिहारो य अभ्यतोथियों की मोक्ष प्ररूपणा और उसका परिहार२८३. इहेगे मूहा पयर्वति मोक्खें, २६३, इस जगत् में अथवा मोक्षप्राप्ति के विषय में कई मूढ़ इम आहारसंपाजणवज्मणे । प्रवाद का प्रतिपादन करते हैं कि आहार का रस-पोषक-नमक एगे य सोतोबगसेवणेणं, खाना छोड़ देने से मोक्ष प्राप्त होता है, और कई शीतल (कच्चे हुतेण एगे पवति मोक्वं ।। जल के सेवन से) तथा कई (अग्नि में घृतादि द्रव्यों का) हवन करने से मोक्ष (की प्राप्ति) बतलाते हैं। पाओसिणाणादिसु णस्थि मोक्खो, प्रातःकाल में स्नानादि से मोक्ष नहीं होता, न ही क्षार पारस्स लोगस अणासएणं । (खार) या नमक न खाने से मोक्ष होता है। वे (अभ्यतीर्थी ते मज्ज मंस लसुणं च भोम्चा, मोशवादी) मद्य मांस और लहसुन वाकर मोक्ष-अन्यत्र (संसार अन्नत्य वासं परिकप्पयंति ॥ में) अपना निवाम बना लेते हैं। उदगेग जे सिविमुवाहरंति, सायंकाल और प्रातःकाल जल का स्पर्श (स्नानादि क्रिया सायं च पातं उवर्ग फुसंता। के द्वारा) करते हुए जो जल स्नान रो सिद्धि (मोक्ष प्राप्ति) उदगस्स फाण सिय य सिद्धी, बतलाते हैं, (वे मिथ्यावादी है)। यदि जल के (बार-बार) स्पर्श सिमिम पाणा बहवे वर्गसि ॥ से मुक्ति (मिडि) मिलती नो जल में रहने वाले बहुत-से जलचर प्राणी मोक्ष प्राप्त कर लेते। मच्छा य कुम्मा य सिरीसिवा य, (यदि जलस्पर्श से मोक्ष प्राप्ति होती तो) मत्स्य, कच्छप, मग्गू य उट्टा वगरक्खसा य ! मरीसृप (जलचर सर्प), मग तथा उष्ट्र नामक जलचर और अट्ठाणमेयं कुसला वदंति जलराक्षस (मानवाकृति जलचर) आदि जलजन्तु सबसे पहले उदगेण जे सिडिमुवाहरति ।। मुक्ति प्राप्त कर लेते, परन्तु ऐसा नहीं होता। अतः जो जल स्पर्श से मोक्षप्राप्ति (सिद्धि) बताते हैं, मोशतत्त्व पारंगत (कुशल) पुरुष उनके इस कथन को अयुक्त कहते हैं। उदगं जती कम्म मलं हरेज्जा, जल यदि कर्म-मल का हरण-नाश कर लेता है, तो वह एवं सुहं इच्छामेत्तता वा । इसी तरह शुभ-पुण्य का भी हरण कर लेगा (अतः जल कर्मअंधव यारमणुरूसरिता, मल हरण कर लेता है, यह कयन) इच्छा (कल्पना) मार है। पागाणि चेवं विणिहंति मंदा।। मन्दबुद्धि लोग अज्ञानान्ध नेता का अनुसरण करके इस प्रकार (जलस्नान आदि कियाओं) से प्राणियों का घात करते हैं । पायाई कम्माई पकुम्घतो हि, यदि पापकर्म करने वाले व्यक्ति के उस पाप को शीतल सिओवगं तु जइ त हरेज्जा। (सचित्त) जल (जल स्नानादि) हरण कर ले तब तो कई जल सिमुि एगे दगसप्तपाती, जन्तुओं का घात करने वाले (मछुए आदि) भी मुक्ति प्राप्त कर मुसं वयंते जलसिद्धिमा ।। नेंगे। इसलिए जो जल (स्नान आदि) से सिद्धि (मोक्ष प्राप्ति) बतलाते हैं, वे मिथ्यावादी हैं। हुण जे सिद्धिमुवाहरति, ___सायंकाल और प्रातःकाल अग्नि का स्पर्श करते हुए जो सायं च पातं अणि फुसंता । लोग (अग्निहोत्रादि कर्मकाण्डी) अग्नि में होम करने से सिद्धि (मोक्षप्राप्ति या सुगतिगमनरूप स्वर्गप्राप्ति) बतलाते हैं, वे भी . .---. : udaul
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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