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________________ सूत्र २१ एकान्सदृष्टि निषेध वर्शनाचार [१८६ जस्थि जीवा अजीया बा, णे सणं निवेसए । अस्थि जीवा अजोया बा, एवं सम्णं निवेसए । पत्धि धम्मे अधम्म वा, गंव सणं निबेसए । अस्थि धम्मे अधम्मे वा, एवं सणं निवेसए ।। गस्थि बंधे व मोगले वा, येवं सम्णं निवेसए। अस्थि बंधे व मोक्खे बा, एवं समिवेसए । यि पुष्णे व पाये वा, गेवं सष्णं निवेसए । अस्थि पुणे व पावे वा, एवं सणं निवेसए । परिय आसवे संबरे वा, वं सणं निवेसए। अस्थि आसवे संबरे वा, एवं सपणं निवेसए । त्धि वेयणा मिज्जरा वा, व सणं निवेसए । अस्थि यणा निज्जरा वा, एवं सणं निवेसए ।। मस्थि किरिया अकिरिया वा, ये सणं निवेसए। अस्थि किरिया अकिरिया वा, एवं सणं निवेसए । नथि कोहे व माणे वा, णेवं सणं निवेसए। अस्थि कोहे व माणे वा, एवं साणं निवेसए । नथि माया व लोभे वा, व सणं निवेसए । अस्थि माया व लोमे वा, एवं सणं मिवेसए ॥ जीब और अजीव पदार्थ नहीं है, ऐसी संज्ञा नहीं रखनी चाहिए, अपितु जीव और अजीव पदार्थ हैं, ऐसी संज्ञा (बुद्धि) रखनी चाहिए। धर्म-अधर्म नहीं है, ऐगी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, किन्तु धर्म भी है और अधर्म भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए । बन्ध और मोक्ष नहीं है, यह नहीं मानना चाहिए, अपितु बन्ध है और मोक्ष भी है, यही श्रद्धा रखनी चाहिए । पुण्य और पाप नहीं है, ऐसी बुद्धि रखना उचित नहीं, अपितु पुण्य भी है और पाप भी है, ऐसी बुद्धि रखनी चाहिए । आधब और संवर नहीं है, ऐसी श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए, अपितु आथव भी है और संवर भी है, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए । वेदना और निर्जरा नहीं है, ऐसी मान्यता रखना ठीक नहीं है किन्तु वेदना और निजेरा है, यह मान्यता रखनी चाहिए । क्रिया और अक्रिया नहीं है, ऐसी संजा नहीं रखनी चाहिए, अपितु क्रिया भी है और अक्रिया भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए। __क्रोध और मान नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, अपितु क्रोध भी है और मान भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए। माया और लोभ नहीं है, इस प्रकार की मान्यता नहीं रखनी चाहिए, किन्तु माया है और लोभ भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए। राग और द्वेष नहीं है, ऐसी विचारणा नहीं रखनी चाहिए, किन्तु राग और द्वेष हैं, ऐसी विचारणा रखनी चाहिए। चार गति बाला संसार नहीं है, ऐसी श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए, अपितु चातुर्गतिक संसार (प्रत्यक्षसिद्ध) है, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए। देवी और देव नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, अपितु देव-देवी हैं, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए। सिद्धि (मुक्ति) या असिद्धि (अमुक्तिरूप संसार) नहीं है, ऐसी बुद्धि नहीं रखनी चाहिए, अपितु सिद्धि भी है और असिद्धि (संसार) भी है, ऐसी बुद्धि रखनी चाहिए। ___ सिद्धि (मुक्ति) जीव का निज स्थान (सिद्धशिला) नहीं है, ऐसी खोटी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्युत सिद्धि जीव का निजस्थान है, ऐसा सिद्धान्त मानना चाहिए। (संसार में कोई) साधु नहीं है और असाधु नहीं है, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्यक्ष साधु और असाधु दोनों है, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए। ......AC ... ... . पश्थि पेज्जे व बोसे वा, णेब सणं निवेसए । अस्थि पेज्जे व चौसे वा, एवं सग्णं निवेसए । गस्थि चाउरते संसारे, जैव सणं निवेसए। अस्थि पाउरते संसारे, एवं सणं निवेसए । . . पत्थि वैषो व देवी वा, व सणं निवेसए । अस्थि देवो व देश बा, एवं सम्णं निवेखए ।। नस्थि सिद्धी असिद्धी वा, पेवं सणं निवेसए। अस्थि सिद्धी असिद्धी वा, एवं सणं निवेसए । नस्थि सिद्धी नियं ठाणं, पेचं सम्णं निवेसए । अस्थि सिद्धी नियं ठाणं, एवं सगं निवेसए ।। नधि साहू असाहू वा यं सम्णं निवेसए । अस्थि साहू असाहू या, एवं सणं निवेसए॥
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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