SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र २२६ सम्परव-पराक्रम के प्रश्नोत्तर दर्शनाचार १३३ इत्ता पालइत्ता तोरहत्ता किट्टइता सोहइत्ता राहता श्रद्धा कर, प्रतीति कर, कचि रखकर, जिसके विषय का स्पर्श आणाए अणुपासत्ता बहवे जोवा सिनम्ति बुज्झन्ति सुरुचन्ति कर, स्मृति में रखकर, समग्र-रूप से हस्तगत कर, गुरु को पठित परिनिभ्वायन्ति सव्ववुक्खाणमन्तं करेन्ति । पाठ का निवेदन कर, गुरू के समीप उन्नारण की शुद्धि कर, तस्स म अयम? एवमाहिज्जइ तं जहा राही भर्ग काय 5-7 का और अंदी आज्ञा के अनुसार अनुपालन कर बहुत जीव सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण (शान्त) होते हैं और सब दुःखों का अन्त करते। हैं । सम्यक्रव-पराक्रम का अर्थ इस प्रकार कहा गया है। जैसे१. संवेगे २. निस्वेए १. संवेग २. निवेद ३. धम्मरक्षा ४. गुरसाहम्मियसुस्सूसणया ३. धर्म-प्रदा ४. गुरु और सामिक की शुश्रूष ५. आलोयणया ६. निन्दया ५. आलोचना ६. निन्दा ७. गरहणया ८. सामाइए ७. गर्दा ८. सामायिक १. चउवासस्थए १०. वणए ६. चतुर्वि गति-स्तव १०. वन्दन ११. परिक्कमणे १२. काउस्सग्गे ११. प्रतिक्रमण १२. कायोत्सर्ग १३. पश्चाखाणे १४. थयथुष्मंगले १३. प्रत्याख्यान १४. स्तव-स्तुति-मंगल १५. कालपडिलेहणया १६. पायपिछत्तकरणे १५. काल-प्रतिलेखन १६. प्रायश्चितकरण १७. खमावणया १०. सजाए १७. क्षामणा १८, स्वाध्याय १६. वायणया २०. परिपुच्छणया १६. वाचना २०. प्रतिप्रच्छना २१. परियट्टणया २२. अणुप्पेहा २१. पराक्तंना . २२. अनुप्रेक्षा २३. धम्मकहा २४. सुपस्स आररहणया २३. धर्म-कथा २४. श्रुताराधना २५, एगग्गमणसंनिवेसणया २६. संजमे २३. एकाग्र मन की स्थापना २६. संयम २७. त २८. वोदागे २७. प २८. व्यवदान २६. सुहसाए ३०. अपडिनद्धया २९. सुख की स्पृहा का त्याग ३०. अप्रतिबद्धता ३१. विवित्तसपणासणेसेवणया ३९, विनियतणया ३१. विविक्त-शयनासन-सेवन ३२. विनिवर्तना ३३. संभोगपश्चखाणे ३४. जवहिपच्चक्खाणे २३. सम्भोग-प्रत्याख्यान ३४. उपधि-प्रत्याख्यान ३५. माहारपत्रमाणे ३६. कसायपत्रमाणे ३५. आहार-प्रत्याख्यान ३६. कषाय-प्रत्यास्यान ३७. मोगपञ्चषखाणे ३८. सरीरपाचक्खाणे ३७. योग-प्रत्याख्यान ३८. शरीर-प्रत्याख्यान २६ सहायपश्चक्लाणे ४०. भतपश्वक्खागे ३६. सहाय-प्रत्याख्यान ४०. भक्त-प्रत्याख्यान ४१. सम्भावपच्चक्खाणे ४२. पडिरूवया ४१. सद्भाव-प्रत्याख्यान ४२. प्रतिरूपता ४३. यावच्चे ४४. सध्यगुणसंपण्णया ४३. वैयावृत्य ४४. सर्वगुण-सम्पन्नता ४५. बीयरागया ४६. खन्ती ४५. वीतरागता ४६. शांति ४७. मुत्ती ४८. धज्जवे ४७. मुक्ति ४८. आर्जन ४६. मध्ये ५०. भावसाचे ४६. मार्दव ५०. भाव-सत्य ५१. करणसम्चे ५२. जोगसमये ५१. करण-सत्य ५२. योग-सत्प ५३. मणगुस्सया ५४. वयगुत्तया ५३. मनो-गुप्तता ५४. वाक्नगुप्तता ५५. कायगुत्तया ५६. मणसमाधारणया ५५. काय-गुप्तता ५६. मनःसमाधारणा ५७. वयसमाधारणया ५६. कायसमाधारणया ५७, वाक्-समाधारणा ५८. काय-समाधारणा ५६. माणसंपन्नया ६.. सणसंपण्या ५६. जान-सम्पन्नता ६०. दर्शन-सम्पन्नता ६१. परित्तसंपन्नया ६२. सोइन्वियनिसगहे ६१. चारित्र-सम्पन्नता ६२. श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह ६३. चखिन्धियनिग्गहे ६४. पाणिन्दियनिगाहे ६३, चक्षुरिन्द्रिय-निग्रह ६४. नाणेन्द्रिय-निग्रह ६५. जिबिभन्द्रियनिग्गहे ६६. कासिन्धियनिग्गहे ६५. जिहन्द्रिय-निग्रह ६६. स्पर्णनेन्द्रिय-निग्रह
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy