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________________ ११६] चरणानुयोग अवधिज्ञान के क्षोमक सूत्र १७३-१७५ ओहिनाणिस्स खोभगा अवधिज्ञान के क्षोभक१७३. पाहि ठाणेहि ओहिसणे समुपज्जिउकामे वि तप्पामयाए १७३. अवधिज्ञान प्रथम अवधिउपयोग की प्रवृत्ति के समय गाँव खंभाएज्जा, तं जहा कारणों से शुब्ध-चलित होता है, यथा१. अप्पभुतं वा पुढवि पासित्ता तपढमयाए खंभाएज्जा, (१) पृथ्वी को अल्प देषकर अवधिजानी प्रथम अवधि उपयोग की प्रवृत्ति के समय क्षुब्ध होता है, २. कुन्धरासिभूतं वा पुढवि पासित्ता तप्पडमयाए खंभाएज्जा, (२) कुंओं की राणिमय पृथ्वी को देखकर अवधिज्ञानी प्रथम अवधिउपयोग की प्रवृत्ति के समय क्षब्ध होता है, ३. महइ महालयं या महोरगसरीरं पासिता तपहमपाए (३) महान् अजगर के शरीर देख कर अवधिज्ञानी प्रथम खंचाएर, अवधि उपयोग की प्रवृत्ति के समय क्षुब्ध होता है। ४. देवं वा महविज्ञपं-जाव-महेसमखं पासिसा तापतामयाए (४) अत्यन्त सुम्पी और महती त्राद्धि वाले देव को देखकर खंभाएज्जा, अवधिज्ञानी प्रथम अवधिउपयोग की प्रवृत्ति के समय क्षुब्ध होता है। ५. पुरेसु वा रोराणाई महइ महालयाई महानिहाणाई पहीण (५) पुर प्रामादि वे. जनपद आदि में एवं गिरिकन्दरा. सामियाई, पहीणसेउयाई, पहीणगुसागराई उछिन- मशान-शून्यगृह आदि स्थानों में स्वामी हीन उत्तराधिकारीहीन सामियाई उछिनसेउयाई उच्छिन्नगोत्तागाराई जाहं प्राचीन दबी हुई महानिधियों (भण्डारों) को देखकर अवधिजानी इमाई गामागर-णगर-खेड-कबड-मंब-बोणमुह पट्टणासम- प्रथम अवधिउपयोग की प्रवृत्ति के समय क्षुब्ध होता है। संवाह-सन्निवेसेमु सिंघारग-तिग-चसक्क-पकचर-बउम्मुहमहापहपहेसु णगरणितमणेसु सुसाग सुत्रागार-गिरिकंबरसंति-सेलोवढाषण प्रवणगिहेसु समिक्खिसाई चिट्ठन्ति ताई या पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। इच्चेएहि पंचहि ठाणेहि ओहिदसणे समुपज्जितकामे तप्पलमयाए खंभाएज्जा। केवलणाण-दसण अक्खोभगा केवलज्ञान-दर्शन के अक्षोभक१७४. पंचहि वाहि केबलवरनाण-सणे समुपज्जिउकामे तप्प- १७४. केवलजानी और केवलदर्शनी उपयोग की प्रवृत्ति के समय मयाए नो खंभाएमा, तं महा क्षुब्ध नहीं होता, यथा-- अप्पभूतं वा पुयि पासित्ता तप्पामयाए नो खंभाएज्जा, पृथ्वी को अल्प देखकर-यावद-स्वामीहीन महानिधियों --सेसं तहेव-जाव-भवणगिहेसु समिक्खित्ताई चिट्ठन्ति को देखकर क्षुब्ध नहीं होते हैं । इन पाँच कारणों से-यावतताईवा पासित्ता तप्पढमयाए नो खंमाएज्जा। इच्चएहि क्षुब्ध नहीं होते हैं। पंचहि ठाणेहि-जाव-नी खंभाएज्जा। -ठाणं. अ.५.उ. सु. ३६४ णाणसंपन्ना किरियासंपन्ना य ज्ञान सम्पन्न और क्रिया सम्पन्न - १७५. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा १७५. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथासुहे गाममेगे बुहे. एक पुरुष मास्त्रज्ञ है और त्रियाकुशल भी है, सुहे नाममेगे अयुहे. एक पुरुष शास्त्रज्ञ है किन्तु क्रियाकुशल नहीं है, अहे नाममेगे बुहे, एक पुरुष शास्त्र नहीं है किन्तु किया कुशल हैं, आहे नाममेगे अबुहे। एक पुरुष शास्त्रज्ञ भी नहीं है और कियाकुशल भी नहीं है। चत्तारि पुरिसझाया पणसा, तं जहा चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथाबुहे नाममेमे बुहहियए, एक पुरुष विवेकी है और उसके कार्य भी विवेकपूर्ण हैं, सुहे नाममेगे अबुहहियए, एक पुरुष विवेकी है किन्तु उसके कार्य अविवेककृत हैं, अबुहे नाममेगे पुहियए, एक पुरुष अविवेकी है किन्तु उसके कार्य विवेकपूर्ण है, अचूहे नाममेगे अबुहहिपए। -ठाणं. ४, उ, ४, सु.३४२ एक पुरुष अविवेकी है और उसके कार्य भी अविवेककृत हैं।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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