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________________ ११२-११४ २. पछि सामने जो पति ३. एणे पति विपण्डित वि ४. एगे जो पण्डिति णो पाति बारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-१. पुच्छद्र 'णामगे णो पुच्छावेद, २. गाममे मो पुच्छ ३. एगे पुच्छ विपुछा ये वि ४. एगे णो पुच्छ णो पुच्छावेद । चारि पुरिसावा प तं १. नामगेोपवेति २. गो ए ३. एगे व पावेति वि ४. एगे की पूएइ णो पूपाचेति । विणीयस्स लखणाई १४. 1 गुरुवार । गिरने से विषए तिरपद विमीत के लक्षण मयोग area, जातियरियरस तं परिएका उ उपाए | -उत्त. अ. १, गा. ४३ काल छंदोदयारं च परिहत्ताण हे । ते तेण उवाएण, सं वं संवाए । - दस. अ. ६, उ. २, गा. २० २. कोई पुरुष दूसरों से सत्कार करवाता है, किन्तु स्वयं सत्कार नहीं करता । विनय ज्ञानाचार ३. कोई पुरुष स्वयं भी सत्कार करता है और दूसरों से भी सत्कार करवाता है । ४. कोई पुरुष स्वयं सत्कार करता है और दूसरों से सत्कार करवाता है । पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे १. कोई पुरुष (गुरुजनादि का ( दूसरों से ) सम्मान नहीं करवाता । [41 - अ. ४, उ. १, सु. २५६ करवाता है । २. कोई पुरुष दूसरों से सम्मान करवाता है, किन्तु स्वयं सम्मान नहीं करता । ३. कोई पुरुष स्वयं भी सम्मान करता है और दूसरों से भी सम्मान करवाता है । सम्मान करता है, किन्तु ४. कोई पुरुष न स्वयं सम्मान करता है और न दूसरों से सम्मान करवाता है । पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे १. कोई पुरुष (गुरुजनादि की) पूजा करता है, किन्तु ( दूसरों से ) पूजा नहीं करवाता । २. कोई पुरुष दूसरों से पूजा करवाता है, किन्तु स्वयं पूजा नहीं करता । ११४. विदेश के अनुसार कार्य करने वाला, गुरुजनों के समीप बैठने वाला, और उनके इंगित तथा बाकार के ज्ञान से - उत्त. अ. १, गा. २ जो सम्पन्न है वह विनीत कहा जाता है । ३. कोई पुरुष स्वयं भी पूजा करता है और दूसरों से भी पूजा करवाता है । विनीत के लक्षण ४. कोई पुरुष न स्वयं पूजा करता है और न दूसरों से पूजा समोहं वय कुजा, बावरिया महत्णो । बिमाए कम्मुगा उषवायए । - दस. अ. प, गा. ३३ रण करे । आचार्य के मनोगत और वाक्यगत भावों को जानकर, उनको वाणी से ग्रह करे और कार्यरूप में परिणत करे। काल, अभिप्राय और आराधना विधि को हेतुओं से जानकर, उस-उस (तदनुकूल ) उपाय के द्वारा उस-उस प्रयोजन का सम्प्रतिपादन करे-यूरा करे। मुनि महान् बात्मा आचार्य के वचन को सफल करे । ( आचार्य जो कहे) उसे वाणी से ग्रहण कर कर्म से उसका आच
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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