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घरकानुयोग
अन्तरिक्ष अस्वाध्याय
सत्र १०४.१०५
५. णिग्याते।
५. निर्धात—मधों के होने या न होने पर आकाश में ध्यन्तरादि कृत घोर गर्जन या बज्ञपात के होने पर स्वाध्याय नहीं करना।
६. यूपक-सन्ध्या की प्रभा और चन्द्रमा की प्रभा एक
साथ मिलने पर स्वाध्याय नहीं करना । ७. मक्खालिने ।
७. यक्षादीप्त-यक्षादि के द्वारा किसी एक दिशा में बिजली
जैसा प्रकाश दिखने पर स्वाध्याय नहीं करना । ८. धूमिपा।
८. धूमिका-कोहरा होने पर स्वाध्याय नहीं करना। १. महिया ।
९. महिका-तुषार या बर्फ गिरने पर स्वाध्याय नहीं
करना। १०. रयुग्धाते।
१०. रज-उद्घात-तेज आंधी से धूलि उड़ने पर स्वाध्याय
.--आर. स. १०. १४ नमान। अकाले सहायकरणस्स काले सजलायअफरणस्स अकाल स्वाध्याय करने और काल में स्वाध्याय नहीं पायच्छितं
__करने का प्रायश्चित्त१०५. मिल चहि संशाहि सज्झायं करेह करतं वा साइज। जो भिक्षु प्रातःकाल में, सांयकाल में, मध्यान्ह में और
तं जहा–१. पुरवाए संझाए, २. पच्छिमाए संशाए, 1. अव. अर्धरात्रि में इन चार मन्ध्याओं में स्वाध्याय करता है, करने के रहे, ४. अकरते।
लिए कहता है, व करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खु कालियसुयस्स पर सिहं पुरुछाणं पुसछह पुच्छंतं पा जो भिक्षु कालिक श्रुत की तीन पृच्छाओं से अधिक पृच्छाएँ साइजइ ।
आचार्य से अकाल में पूछता है, पूछने के लिए कहता है, व पूछने
वाले का अनुमोदन करता है। मे मिक्स विदिवायस परं सत्तहं पुग्छाणं पुछा पुग्छतं जो भिक्षु दृष्टिवाद की सात पृच्छाओं से अधिक पृच्छाएं या साइज्मा ।
अकाल में आचार्य से पूछता है, पूछने के लिए कहता है, व पूछने
वाले का अनुमोदन करता है। मे मिक्सू चउसु महामहेसु मजसाय को करतं वा साइम्जा। जो भिक्षु इन्द्रमहोत्सव, स्कन्दमहोत्सव, यक्षमहोत्सव, तं महा-१. इंदमहे, २. खरमहे, ३. जपणमहे, ४. भूतमहे। भूतमहोत्सव, इन चार महोत्सवों में स्वाध्याय करता है,
स्वाध्याय करने को कहता, व स्वाध्याय करने वालों का अनुमोदन करता है।
१ अनभ्र वचपात तथा गजने की प्रचण्ड ध्वनि को निर्घात कहते हैं । इसका अस्वाध्याय काल एक प्रहर का है। २ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, द्वितीय और तृतीया को सन्ध्या की प्रभा और चन्द्र की प्रभा मिल जाती है । उस समय सन्ध्या का
बीतना मालूम नहीं होता, इसलिए इन तीन दिनों में एक प्रहर का अस्वाध्याय काल है। ३ किसी एक दिशा में ठहर-ठहर कर विजली जैसा प्रकाश दिखाई देता है, उसे यक्षादिप्त कहते हैं। इसका अस्वाध्याय काल
एक प्रहर का है। ४ कार्तिक मास से माघ मास पर्वन्त मेघ का गर्भकाल कहलाता है। इस काल में धूम्र वर्ण का कुहरा पड़ता है। जब तक कुहरा
रहे तब तक अस्वाध्याय काल है। ४ उक्त गर्भकाल में श्वेतवर्ण का कुहरा पड़ता है, उसे मिहिका कहते हैं। जब तक श्वेतवर्ण का कुहरा रहे तब तक अस्वाध्याय
काल है। . रजोषात-आकाश में रज छाई रहै तब तक अस्वाध्याय काल है। ७ अकाले को समाओ---आव. अ. ४, सु. २६