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त्रस आयुके अन्तर्मुहर्तकाल बाकी रहनेपर मरणके समय मारणान्तिक समुद्धात करता है । उस समय उसके कुछ प्रदेश प्रसनाडीसे बाहिर जहां वह स्थावरपर्याय धारण करेगा, वहां जाते हैं, सो इस अपेक्षासे त्रसनाड़ीसे बाहिर त्रसजीवोंका अस्तित्व हुआ । दूसरे त्रसनाडीसे बाहिरका कोई स्थावर जब स पर्यायकी आयुका बंध करता है, तब मरणके समय कार्माण शरीरसहित त्रसनामा नाम कर्मके उदयसे त्रस होकर असनाडीके प्रति गमन करता है, उस समय विग्रह गतिमें त्रसनाडीके बाहिर उसका अस्तित्व हुआ और तीसरे केवलीभगवान जब केवलसमुद्धात करते हैं, तब उनके प्रदेश सनाडी और उससे बाहिर सर्वत्र लोकमें व्याप्त हो जाते हैं, सो इस तरह भी सनाडीसे बाहिर त्रसका अस्तित्व हुआ । क्योंकि केवलीभगवान् त्रस हैं । इस तरह तीन प्रकारसे त्रसनाडीके बाहिर भी त्रस जीवोंका अस्तित्व जिनवाणीमें बतलाया है ।
. तीनों लोकोंका घनफल।
छप्पय।
पूरब पच्छिमतलें सात, मधि एक बखानी । पंच स्वर्गमैं पांच, अंतमैं एक प्रवांनी ॥ चहुं मिलाय चहुं अंस, तीनि साढ़े परमानौ । दच्छिन उत्तर सात, साढ़ चौवीस बखानौ ॥
च०२