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अर्थ-ऊखलीमें जिस तरह एक पोली वांसकी नली खडी कर दी हो, इस तरह लोकाकाशके बीचमें त्रसनाली है जो चौदह राज ऊंची और एक राजू चौडी है, तथा त्रसँजीवींसे भरी हुई है । ये त्रसजीव यद्यपि सनाडीके
ही भीतर होते हैं-बाहिर कहीं भी इनका अस्तित्व नहीं • कहा है, तो भी आगे कहे हुए तीन प्रकारोंसे त्रसजीव
सनाडीसे बाहिर भी पाये जाते हैं,-एक तो कोई त्रसजीव जब स्थावरजीवक्री आयुका बंध करता है, तब वह
१ वांसकी नलीकी उपमा पोलेपनके कारण दी है । परन्तु त्रसनाली गोल नहीं है। चौपडके पसिकी नाई लम्बी चौखूटी है । २ सनाली सामान्यरूपसे १४ राजू लम्बी है । परन्तु बारीकीसे देखा जाय, तो कुछ कम तेरा राजू है । क्योंकि सातवें नरकके नीचे एक राजूमें त्रस जीव नहीं हैं-निगोदिया हैं, और सातवें नरककी भूमिकी कुछ कम आधी मोटाई में और सर्वार्थसिद्धिके ऊपर इक्कीस योजनमें त्रस जीव नहीं हैं । और त्रसनाली उतनीहीको कहना चाहिये, जितनेमें त्रस जीव हो । ३ या 'त्रस' शब्द उपलक्षण है। अर्थात् त्रसनाड़ीमें केवल त्रत जीव ही नहीं भरे है, पृथ्वी आदि पांच प्रकारके स्थावर भी हैं। परन्तु सनाडीके बाहिर अन्यत्र कहीं भी त्रसजीव नहीं हैं, इसलिये उसनाड़ीमें त्रस जीव भरे हैं, ऐसा कहा है । और त्रसनाड़ीमें प्रधानता भी त्रसोंकी ही है । जिस आयुको जीव भोगता है, उसके तीन भागोंमेसे दो भाग भोग लेनेपर आगामी भवकी आयु बांधनेकी योग्यता होती है । अर्थात् दो भाग व्यतीत होते ही आगामी भवकी आयु बंध जाती है । परन्तु यदि उस समय नहीं बंधे, तो एक भाग जो बाकी रह गया हैं, उसके तीन भागोंमेंसे दो भाग बीत जानेपर बँधती है और यदि उस समय भी नहीं बँधती है, तो फिर जो शेष रहती है, उसके तीन भागों से दो भाग बीतनेपर बँधती है, इस तरह अधिकसे अधिक आठ अपकर्षण होते हैं । यदि इनमें भी आय न बंध पाई होतो भुज्यमान आयुमें आवलीके असंख्यातवें भाग काल बाकी रहनेके पहले अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर भीतर किसी समयमें तो अवश्य ही बंध जाती है।