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(१०१) अधोलोकके श्रेणीबद्ध बिलोंकी संख्या । सात नर्क भूमि उनचास पाथरे निवास, इंद्रक भी उनचास बीचमाहिं बिले हैं । पहलौ सीमंत चारि दिसा सेनी उनचास, चारि विदिसामैं अठताली भेद निले हैं । आठ दिस सेनीबंध तीनिसै अठासी भए, आगें आठ आठ घटे अंत चारि मिले हैं। सब च्यानवै सै चारि जोजन असंख धारि, . दया धरै धर्म करें तिनौं दुख गिले हैं ॥७१॥ अर्थ-नरक भूमियां सात हैं । उन सबमें ४९ पाथड़े ( उत्तरभेद ) हैं । प्रत्येक पाथड़ेमें कूपके आकारका गोल एक एक इन्द्रक है, इस लिये उनकी संख्या भी ४९ है । उनके बीचमें बिल हैं । पहली भूमिमें १३ पाथड़े हैं, उनमें पहिला सीमन्तक नामका पाथड़ा या पटल है । उसकी चारों दिशाओंमें उनचास उनचास और और विदिशाओंमें अड़तालीस अड़तालीस श्रेणीवद्ध बिल हैं । सो दिशाओंके १९६ और विदिशाओंके १९२ इस तरह आठों दिशाओंके मिलकर ३८८ बिल हुए । यह एक पटलका वर्णन हुआ। शेष ४८ पटल या पाथड़े रहे, सो उनके बिलोंकी संख्या क्रमसे आठ आठ घटती हुई है । अर्थात् दूसरेकी ३८०, तीसरेकी ३७२, चौथेकी ३६४ और आगे इसी तरह आठ