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१४ साधारण, १५ यश कीर्ति, १६ अयश कीर्ति, १७ सुस्वर, १८ दुःस्वर, १९ आदेय, २० अनादेय, २१ निर्माण, २२ श्वासोच्छास, २३ अपघात, २४ परघात, २५ अगुरुलघु, २६ आतप, २७ उद्योत और तीर्थंकर । तीर्थकरदेवको मैं नमस्कार करता हूं।
जम्बूद्वीपके पूर्व पश्चिमका वर्णन । जंबूदीप एक लाख मेरु दस ही हजार, भद्रसाल दो वन सहस चवालीसके । बाकी छयालीस आधौं आध दोनों ही विदेह, देवारन्य वन उनतीस सै वाईसके । तीनौं नदी पौने चारि सत चारौं ही वख्यार, .. दो हजार आठौं ही विदेह बच ईसके । सत्तरै सहस सात सत तीनि जोजनके, नमौं चारि तीर्थंकर स्वामी जगदीसके ॥६९॥ अर्थ-जंबूद्वीप पूर्व पश्चिम एक लाख योजन चौड़ा है । इसके बीचमें सुदर्शन मेरु है, जिसका चारौं तरफ गोलाकार विस्तार दशहजार योजनका है । इसके पूर्वपश्चिम भद्रशाल नामका एक एक वन है, जो प्रत्येक बावीस हजार योजनके विस्तारवाला है, इस तरह उन दोनोंका विस्तार चवालीस
१ महायोजन जो कि दो हजार कोशका होता है । . च. श०७