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एक आँवले के समान और हाथकी रेखाओंके समान पूरा पूरा देखते हैं; जीवादि छहों द्रव्योंके भूत भविष्यत् वर्तमानकाल सम्बन्धी अनन्तानन्त गुणों और अनन्ता - नन्त पर्यायों को वर्तमानकी नाई अपने ज्ञानमें इस प्रकार से प्रकाशित करते हैं, जिस तरह दर्पण (आरसी) में सब घटटादि पदार्थ एक साथ प्रकाशित होते हैं और जिन्होंने - मलरूप महातम अर्थात् कर्मोंका महान अन्धकार अथवा माहात्म्य नष्ट कर दिया है । इस लोक में अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु ये पांचों परमेष्ठी विघ्नोंके हरण करनेवाले तथा मंगलके करनेवाले हैं । इसलिये उन्हें मन वचन कायसे प्रथ्वीपर मस्तक लगाकर आनन्दपूर्वक धोक देता हूं अर्थात् प्रणाम करता हूं ।
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इस छप्पयके पहले चार चरणों में सर्वज्ञ देवकी प्रशंसा की गई है और शेष दोमें समुच्चयरूप पांचों परमेष्ठीको नमस्कार किया गया है ।
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श्री नेमिनाथजीकी स्तुति ।
बंदों नेमि जिनंद चंद, सबक सुखदाई । चल नारायणवंदि, मुकुटमणि सोभा पाई ।
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- १ जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । २ दर्पण जेम प्रकास नास मल कर्म महातम का अर्थ इस तरहसे भी होता है कि, जिस तरह दर्पणके ऊपर का मल निकल जानेसे उसमें सब पदार्थ झलकते हैं उसी प्रकारसे कर्म - मलके नाश हो जानेका ही यह माहात्म्य है कि, सर्वज्ञके ज्ञानमें छहों द्रव्य लकते हैं । परमपदमें जो तिष्ठें, उन्हें परमेष्ठी कहते हैं ।