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चत्तारिवारमुवसमसेणी समारुहदि रपविदकम्मं ।
सो बत्तीसं वाराई संजममुवलहिय णिव्वाणादि ॥ पर्चासागर यहाँपर बत्तीस ही जन्म समझना चाहिये इनमें भी वेवगतिमें तो संयम है ही नहीं इसलिये मनुष्य1 ६४] पर्यायमें हो संयम समझ लेना चाहिये।
६८-चर्चा अडसठवीं प्रश्न-मुनिराजके आहारके समयका प्रमाण क्या है ?
समाधान-तीन मुहूर्त दिन चढ़ जाने के बावसे लेकर जब तक तोन मुहूर्त दिन बाकी रहे तब तकके मध्यके समयमें मुनिराज अपने नित्य कार्योंसे निवृत्त होकर अन्सराय और दोषोंको टालकर एक बार योग्य # आहार लेते हैं । भावार्थ-प्रातःकाल तीन मुहूर्त तक आहार नहीं लेते। शामको तीन मुहूर्त दिन बाकी रहने ।
तक लेते हैं आगे नहीं लेते ! मध्यके समय में सामायिकके समयको टालकर आहार लेते हैं। सो ही श्रीवट्ट। केरस्वामी विरचित मूलाचारके प्रथम अधिकारमें लिखा है--
उदयत्यमणे काले णालीतियवज्जियम्हि मज्झम्हि ।
एकम्हि दुअ तिए वा मुहुत्तकालेपमत्तं तु ॥ ३५ ॥ सं० छाया-उदयास्तमनयोः कालयोः नालीत्रिकवर्जिते मध्ये ।
एकस्मिन् द्वयोः त्रिषु वा मुहूर्तकाले एकभक्तं तु ।। मूलाचारप्रदीपकमें लिखा है। विज्ञेयोशनकालोत्र संत्यज्य घटिकात्रयम् । मध्ये च योगिनां भानुदयास्तभनकालयोः। # यह जो तीन मुहूर्त काल सुबह शाम छोड़नेका बतलाया है वह भी उस्कृष्टकाल है मध्यमकाल दो मुहूर्त और जघन्यकाल एक मुहूर्त सुबह शाम छोड़नेका समझना चाहिये । सो हो मूलाचारप्रदीपकमें लिखा है१. गाथामें नाली शब्द है नाली शब्दका अर्थ मुहूर्त नहीं होता किंतु घड़ी होता है । मूल चारप्रदीपके श्लोकमें भी घड़ी पाब्द हो । लिखा है। इसलिये सवेरे शामका तीन घड़ो समय छोड़कर आहार लेते हैं यह अर्थ हुआ। सम्पादक