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________________ सागर -चाचा प्रचERamanचाचा । सरेको हिंसा किये बिना ही केवल मानसिक पापके फलसे मरक जाता है। मानसिक पापका ऐसा हो । | माहात्म्य है इसलिये भव्य जीवोंको चाहिये कि वे मनके संकल्प विकल्पोंसे उत्पन्न होनेवाले व्ययके पापोंसे सदा बचते रहें । उसी श्रुतसागरी टीकामें और भी लिखा है। अघ्ननापि भवेत्यापी नघ्नन्नपि न पापभाक् । परिणामविशेषेण यथा धीवरकर्षको ॥ इससे सिद्ध होता है कि कर्मबंधका मुख्य कारण जीवोंके परिणाम ही हैं। ५४-चर्चा चौअनवीं प्रश्न--चौदहवें कुलकर राजा नाभिरायकी रानी मरुदेवोका विवाह हुआ था कि नहीं ? समाधान--राजा नाभिराय और रानी मरुवेवोका विवाह इन्ग्रने किया है सो ही महापुराणके बारहवे अधिकारमें लिखा है। तस्याः किल समुद्वाहे सुरराजेन नोदिताः। सुरोत्तमा महाभूत्या चक्रुः कल्याणकौतुकम् ॥ १६ ॥ इससे सिद्ध होता है कि वे युगलिया नहीं थे किन्तु उनका विवाह हुआ था। प्रश्न-यहाँ कोई प्रश्न करे फिस युगलियाकी स्त्रीसे विवाह हुआ था ? समाधान-किसोको स्त्रीसे विवाह नहीं हुआ था किन्तु कन्यासे हुआ था। इसका भी कारण यह है कि तेरहवें कुलकरके ही समयसे युगलिया होना बन्द हो गया था। अर्थात् तेरहवें कुलकरके सामने ही जुदेजुने पुत्र पुत्री होने लगे थे। तब उसके पिता अमितातिने विवाह करनेको रोति चलाई थी। इससे सिद्ध होता है कि नाभिराजा और मदेवी अलग अलग जन्मे थे और उनका विवाह हया था। सिद्धान्तसारदीपकमें लिखा है१. पापका लगना और न लगना केवल परिणामोंसे होता है जैसे मछलियोंको पकड़नेवाला धीवर पानी में जाल डालता है यदि उसके जालमें एक भी मछली न आवे तो भी मारनेके परिणाम होनेसे वह महापापो होता है तथा हल जोतनेवाला किसान अनेक जीवोंकी हिंसा करता है परन्तु उसका संकल्प उन जीवोंके मारनेका नहीं है केवल खेत जोतनेका है इसलिये वह पापी नहीं होता।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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