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________________ सागर ४४ ] S -॥२७॥ संध्याध्ययनपूजादिकर्मसु तत्परो महान् । त्यागी भोगी दयालुश्च स गृहस्थः प्रकीर्तितः ॥२८॥ प्रतिमैकादशधारी ध्यानाध्ययनतत्परः । प्राक्कषायविदूरस्थो वानप्रस्थः प्रशस्यते ॥२६॥ सर्वसंगपरित्यक्तो धर्मध्यानपरायणः । ध्यानी मौनी तपोनिष्ठः संज्ञानी भिक्षुरुच्यते ॥३०॥ इसके सिवाय इन चारों आश्रमोंका इसी प्रकारका कथन धर्मामृतश्रावकाचार में, स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा श्रीशुभद्राचार्य कृत उसको संस्कृत टीकामें तथा और भी अनेक शास्त्रों में लिखा है उनमेंसे इनका विशेष स्वरूप समझ लेना चाहिये । ४२ - चर्चा बियालीसवीं प्रश्न - - पहले कहे हुए नैष्ठिक तथा वानप्रस्थ आश्रमवाले ब्रह्मचारी जो लंगोट आदि वस्त्र पहिनते हैं वह किस रंगका पहिनते हैं ? समाधान -- ऊपर लिखे हुये दोनों प्रकारके ब्रह्मचारी सफेद अथवा कबायले लाल वस्त्रको लंगोटी आदि रखते हैं । सो ही स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षाको टीकामें लिखा है । नैष्ठिक ब्रह्मचारिणः समधिगतशिखालक्षितशिरोलिंगः, गणधर सूत्रोपलक्षितो गेलिंगाः, शुक्ल रक्तवसन खंडकोपोनलक्षितकटिलिंगः स्नातकाः भिक्षावृत्तयो भवंति । देवार्चनपरा भवंति । कदाचित् यहाँपर कोई यह प्रश्न करे कि इनके लिये शुक्ल वस्त्र तो ठीक है परन्तु रक्त वस्त्रोंका ( गेरुआ वस्त्रोंका ) धारण करना तो भेषियोंका रूप समझा जाता है। परंतु इसका समाधान यह है कि पहले कही हुई लाल रंग की लंगोटी पहनना भी नग्नता के लिये हैं । शास्त्रों में दस प्रकारके नग्न बतलाये हैं । जैसे १. इसमें नैष्ठिक ब्रहाचारीका स्वरूप कहने वाला २७वा श्लोक छूट गया है। २. साक्षात् नग्नके सिवाय नौ प्रकारके लग्न भावोनंगमकी अपेक्षा से कहे हैं। साक्षात् नग्नता की लालसा करते हुए ही रंगे वस्त्र वा कोपीन आदि धारण की जाती है। [ ૪૪
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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