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________________ पासागर रा चर्य अवस्था सातवीं प्रतिमासे लेकर ग्यारहवीं प्रतिमा तक समझना चाहिये। आगे गृहस्थका दूसरा वर्णाश्रम ! लिखते हैं। जो त्रिकाल वंदना तथा पूजा' आदि छह कर्मोक करने में तत्पर हो, जो विषय कषाय और हिंसादिक पापोंका त्यागी हो, जो स्वात्मरसका ( अपने शुद्ध आत्माके आनंदरसका ) भोगी हो, जो दयालु हो उसको गृहस्थ कहते हैं, अभिप्राय यह है कि अणुवत, गुणवत, शिक्षावत इन बारह व्रतोंको पालन करनेवाला हो। उसको गृहस्थ कहते हैं। जो ग्यारह प्रांतमाओंको पालन करता हो, जो ध्यान और अध्ययन करनेमें सदा तत्पर हो, अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कषायोंसे रहित हो उनको दानप्रस्थ कहते है। तथा जो हिंसा आदि समस्त पापोंका जीवन पर्यंतके लिये त्यागो हो, पंच महावत आदि अट्ठाईस मूलगुणोंको धारण करनेवाला हो, धर्मध्यानमें लोन हो, ध्यानो हो, मौन धारण करनेवाला हो और तपस्वी हो उसको भिक्षुक कहते हैं। भावार्थ----महा मुनियोंको भिक्षुक कहते हैं। इस प्रकार चारों वर्णाश्रमोंका स्वरूप जानना । सो हो। धर्मरसिक नामके शास्त्रमें लिखा है । उपनयावलंबो चादीक्षितो गूढनैष्ठिकाः। श्रावकाध्ययने प्रोक्ताः पंचधा ब्रह्मचारिणः ॥२२॥ श्रावकाचारसत्राणां विचाराभ्यासतत्परः । गृहस्थधर्मशक्तश्चोपनयब्रह्मचारिकः ॥२३॥ । स्थित्वा क्षुल्लकरूपेण कृत्वाभ्यासं सदागमे । कुर्याद्विवाहकं सोत्रावलंबब्रह्मचारिकः ॥२४॥ विना दीक्षां व्रताशक्तःशास्त्राध्ययनतत्परः। पठित्वोद्वाहं यः कुर्यात्सोऽदीक्षाब्रह्मचारिक॥२५॥ आबाल्याच्छास्त्रसम्प्राप्तिः पित्रादीनां हठात्पुनः । पठिखोद्वाहं यः कुर्यात्स गूढब्रह्मचारिकः ॥२६॥ १. देवपूजा, गुरुको उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान ये गृहस्थोंके छह कर्म हैं। २. यानप्रस्थ अवस्थामें अप्रत्याख्यानावरण सम्बन्धो चारों कषायोंका भी अभाव रहता है। PELAIRPETISEME RGER-AIRचाहायमचारचा
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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