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वर्षासागर
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प्रश्न-इस शास्त्र अनेक प्रन्योंका प्रमाण देकर गाथा-इलोक रखकर इस शास्त्रको क्यों बढ़ाया और क्यों इतना परिश्रम किया केवल उनके नाम ही लिख देते थे। अधिक विस्तारसे क्या लाभ केवल नाममात्र हो लिखना था।
समाधान-इतना..परिश्रम करनेपर भी आजकल के कितने होठग्राहो जीवोंके फिर भो यथार्थ बहान नहीं होता फिर भला केवल ग्रन्थोंका नाम ले देने मात्रसे वे लोग कैसे मानते ? इसलिये स्पष्ट अर्थ विस्खलानेके लिये तथा भ्रम और संवेहको दूर करनेके लिये इतना बढ़ाकर लिखा है। लौकिक शिक्षा में गुरु शिष्यका संवाद है उसमें एक प्रश्नोत्तर यह है । गुरुजीका प्रश्न
लांवो वड फैल्यो नहीं, मरू मालवे जाय ॥
लिखिया खत झूठा पडै, कहो चेला कुण राय ॥ शिष्यका उत्तर—'गुरुजी शाख नहीं' अर्थात् बिना शाख शाखा वा अलियोंके बड़का वृक्ष फैलता नहीं।। बिना शाखाके अर्थात कातिक वा वैसाखको फसल-थान हए बिना मारवाडके लोग प्रायः सब हो गजारा करनेके लिए माल में भेग जाते हैं । तथा बिना शाख के, बिना विश्वास वा प्रमाणके लिखा हुआ खत्त अर्यात् । पन्न भी तमस्सुख ( दलोल) झूठा पड़ जाता है इसलिये गृहस्थ लोगोंके द्वारा बनाये हुये नवीन-नवोन शास्त्र यद्यपि पहलेके आचार्यों बनाये हुए शास्त्रोंके वचनोंके अनुसार ही हैं तथापि उनमें शाल वा प्रमाणरूप शास्त्रोंके वचन अवश्य रख देना चाहिये । प्रमाणरूप शास्त्रोंके वचन रखनेसे फिर किसोके हृदयमें भी जिनवाणीमें संदेह नहीं रहता।
प्रश्न-यदि किसीके हृदयमें प्रमाणरूप शास्त्रोंके वचनोंको देखकर भी सन्देह दूर न हो तो क्या करना
चाहिये।
समाधान-ऐसे मनुष्यों के सामने मौन धारण करना अच्छा है। क्योंकि मूखोंके समझानेका संसारमें कोई उपाय नहीं है । संसारमें उनके स्वभावको औषधि हो नहीं है । भर्तृशतकमें लिखा है१. मालवा ऊँची जगह पर है इसलिये वहाँ प्रायः पानी बरसता ही है दुष्काल नहीं पड़त" इसीलिये लोग दुष्काल पड़ने पर वहां
चले जाते हैं।