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________________ वर्षासागर ५७२] प्रश्न-इस शास्त्र अनेक प्रन्योंका प्रमाण देकर गाथा-इलोक रखकर इस शास्त्रको क्यों बढ़ाया और क्यों इतना परिश्रम किया केवल उनके नाम ही लिख देते थे। अधिक विस्तारसे क्या लाभ केवल नाममात्र हो लिखना था। समाधान-इतना..परिश्रम करनेपर भी आजकल के कितने होठग्राहो जीवोंके फिर भो यथार्थ बहान नहीं होता फिर भला केवल ग्रन्थोंका नाम ले देने मात्रसे वे लोग कैसे मानते ? इसलिये स्पष्ट अर्थ विस्खलानेके लिये तथा भ्रम और संवेहको दूर करनेके लिये इतना बढ़ाकर लिखा है। लौकिक शिक्षा में गुरु शिष्यका संवाद है उसमें एक प्रश्नोत्तर यह है । गुरुजीका प्रश्न लांवो वड फैल्यो नहीं, मरू मालवे जाय ॥ लिखिया खत झूठा पडै, कहो चेला कुण राय ॥ शिष्यका उत्तर—'गुरुजी शाख नहीं' अर्थात् बिना शाख शाखा वा अलियोंके बड़का वृक्ष फैलता नहीं।। बिना शाखाके अर्थात कातिक वा वैसाखको फसल-थान हए बिना मारवाडके लोग प्रायः सब हो गजारा करनेके लिए माल में भेग जाते हैं । तथा बिना शाख के, बिना विश्वास वा प्रमाणके लिखा हुआ खत्त अर्यात् । पन्न भी तमस्सुख ( दलोल) झूठा पड़ जाता है इसलिये गृहस्थ लोगोंके द्वारा बनाये हुये नवीन-नवोन शास्त्र यद्यपि पहलेके आचार्यों बनाये हुए शास्त्रोंके वचनोंके अनुसार ही हैं तथापि उनमें शाल वा प्रमाणरूप शास्त्रोंके वचन अवश्य रख देना चाहिये । प्रमाणरूप शास्त्रोंके वचन रखनेसे फिर किसोके हृदयमें भी जिनवाणीमें संदेह नहीं रहता। प्रश्न-यदि किसीके हृदयमें प्रमाणरूप शास्त्रोंके वचनोंको देखकर भी सन्देह दूर न हो तो क्या करना चाहिये। समाधान-ऐसे मनुष्यों के सामने मौन धारण करना अच्छा है। क्योंकि मूखोंके समझानेका संसारमें कोई उपाय नहीं है । संसारमें उनके स्वभावको औषधि हो नहीं है । भर्तृशतकमें लिखा है१. मालवा ऊँची जगह पर है इसलिये वहाँ प्रायः पानी बरसता ही है दुष्काल नहीं पड़त" इसीलिये लोग दुष्काल पड़ने पर वहां चले जाते हैं।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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