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________________ चित्तारि लोगुत्तमा, अरहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा,साह लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो । लोगुत्तमा । चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरहंत सरणं पठवज्जामि, सिद्धसरणं पव्वज्जामि, । सिागर साहसरणं पवज्जामि, केबलिपण्णत्तो धम्मोसरणं पन्वज्जामि । १९८] प्रम-इस प्रकार यह णमोकारमअपूर्वक मंत्र है । सो णमोकारमंत्रमें तो अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु इन पांचों परमेष्ठियोंका वर्णन आया है और उन पांचों परमेष्ठियोंको नमस्कार किया है परंतु । चत्तारि मंगलं आदि मंत्रमें पहले तो अग्हंत, सिद्ध दो परमेष्ठी कहे फिर साधु परमेष्ठीको स्मरण किया और फिर केवली प्रणीत धर्मको कहा । तया इन्हों चारोंको मंगल लोकोत्तम और शरणभूत बतलाया। सो यहाँ। आचार्य और उपाध्याय परमेष्ठोको क्यों छोड़ दिया? तोन परमेष्ठियोंको हो क्यों स्मरण किया इसका क्या । A कारण है ? समाधान—यह कहना ठीक है परंतु साधुके कहनेसे आचार्य और उपाध्याय भी आ जाते है । क्योंकि जिस प्रकार साधुओंको अट्ठाईस मूलगुण पालन करने पड़ते हैं उसी प्रकार आचार्य और उपाध्यायोंको भी। अट्ठाईस मूलगुण पालन करने पड़ते हैं। इनमें विशेषता इतनो हो हैं कि जो साधु होकर भी दर्शन, जान, चारित्र, तप, वीर्य इन पांचों आचारोंको विशेषताके साथ स्वीकार करे, पालन करें तथा औरोंसे पालन करावें और छत्तोस । गुणोंको विशेषताके साथ पालन करें ऐसे साधुओंको आचार्य कहते हैं अथवा ऐसे साधुओंको आचार्य पद प्राप्त होता है। इससे सिद्ध होता है कि आचार्य भी साधु ही हैं। तथा अट्ठाईस मूलगुणों के साथ-साथ ग्यारह अंग, चौवह पूर्वोको अंतर्मुहूर्तमें अर्थसहित शुद्ध पाठ करनेको जिनमें शक्ति हो ऐसी ऋद्धि जिनको प्राप्त हो जो स्वयं पढ़ें, अन्यको पढ़ावें ऐसे साधुओंको उपाध्याय पद प्राप्त होता है। इसलिये उपाध्याय भी साधु ही हैं। इस प्रकार गुणोंकी अधिकताफी मुख्यतासे ही साधुओंमें आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु ऐसे तीन भेद हैं । वास्तवमें। देखा जाय तो तीनों हो साधु हैं । क्योंकि सभी अट्ठाईस मूलगुणोंको पालन करते हैं। अभिप्राय यह है कि आचार्य ई और उपाध्याय पद भी साधुओंको हो प्राप्त होता है अतएव तोतों होके लिये साधु कह दिया है । साधु कहनेसे आचार्य, उपाध्याय, साधु तीनोंका ही ग्रहण कर लेना चाहिये । एक साधुका हो नहीं लिखा भी है महापुरुषाणां एकवचनोपि बहुवचनोस्ति । मलाsevaaeesaHISRUS .... चा reme - - -
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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