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________________ पर्शनागर [ ५५८ इसके सिवाय सामायिकको पाटोमें एक लोगस्सको पाटो है उसमें पाठ पूर्ण होते समय लिखा है। कित्तिय वंदिय महिया एदे लोगुत्तमा जिणा सिद्धा। सो यहाँपर महियाका अर्थ क्या है ? महियाका अर्थ पूजा करना ही तो है। फिर प्रतिमापूजनका निषेध क्यों करते हो ? आवश्यक सूत्रमें लिखा है कि भरत चक्रवर्तीने चौबीसों तीर्थङ्करोंके जिनबिम्ब बनवाकर कैलाश पर्वतपर विराजमान किये। फिर भी प्रतिमापूजनका निषेध करते हो। जंबूद्वीप पण्णत्तीनामके सूत्रमें लिखा है कि पूजा करनेके लिये राजा करनेवालको तो चित्त जलसे स्नान करना चाहिये और जिनप्रतिमाका अभिषेका छने हुये सचित्त जलसे करना चाहिये। वहाँपर एक करोड़ कलशोंके सचित्त जलसे तीर्थकरका अभिषेक करना लिखा है। इसके सिवाय सूर्याभदेव अभयकुमार अंबड नामका श्रावक और जंघाचारी साधुने नंदीश्वर द्वीपमें जाकर जिनप्रतिमाकी वन्दना की। इस प्रकार अधिकारमें जिनप्रतिमाको पूजाका वर्णन लिखा है । कहाँ तक कहा जाय तुम्हारे । ही सूत्रोंमें प्रसंगानुसार स्थान-स्थानपर जिनप्रतिमापूजन का विधान लिखा है फिर भला इसका निषेध किस प्रकार किया जा सकता है। शास्त्रों के इतने प्रमाण मिलनेपर भी जा जिनप्रतिमाको पूजाका निषेध करते हैं वे सूत्रवाह हैं। ऐसे सूत्रवाह्य मिथ्यात्वो लोग हो जिनप्रतिमापूजनमें हिंसाविक पाप बतलाकर भोल जोधोंको भुलाते हैं सो । अत्यन्त अज्ञानी जीव ही इनके वचनरूपी विषसे ठगे जाकर इस अपार संसारमें परिभ्रमण करते हैं। इस प्रकार ! लुकामत तथा दूढिया मतके सूत्रों के अनुसार ही प्रतिमापूजनका निर्णय किया। कुछ वेवान्ती भी मूर्तिपूजाको नहीं मानते सो आगे उनके लिये लिखते हैं। लौकिकमें चार पेव हैं, अठारह पुराण ई उनमें जो कथन है सो क्या सब व्यर्थ है। परंतु इन सबका कथन तेरे मतसे भो व्यर्थ नहीं हो सकता। | इसलिये तेरा वेदांत तेरे ही पास रहेगा, विशेषज्ञानो ऐसे वेदांतको कभी स्वीकार नहीं कर सकते। पवि मूर्तिपूजन न मानी जाय तो मंदिर, मूर्ति, तीर्थयात्रा, वान, बत, उपवास, श्राड, पिंड, ब्राह्मणभाजन, जप, तप, यम, नियम, जागरण, भक्ति भाव, यशकथा, कोर्तन, उसका श्रवण आदि सब मिय्या मानना पड़ेगा। यदि वेदांतमत एक मोक्षरूप ही है तो फिर ऊपर लिखे पुण्यकार्योंके करनेको क्या आवश्यकता है ? परन्तु सो हो नहीं सकता क्योंकि ऊपर लिखे पुण्यकर्मोसे अनेक जीवोंका उद्धार हुआ है और अनेक जोय मुक्त हुए हैं ऐसा भागवत आदि पुराणोंमें। लिखा है उसको मर्प किस प्रकार कह सकोगे ? इसलिये केवल एकांतवाव मानना वैष्णव, शेव और पौराणिक
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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