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________________ पचासागर [ m] मालवा- है कहां निपज्ञासाइल करना हालिये और जहाँ व्यवहारसे बतलाया है वहां व्यवहारसे ग्रहण करना चाहिये।।। व्यर्थका हट नहीं करना चाहिये । प्रश्न-निश्चय धर्मको माने बिना सम्यग्वां नको प्राप्ति किस प्रकार होगी । उत्तर-आत्मज्ञानको धारण करनेवाले सम्यग्दृष्टो जीव इस पंचमकालमें बहुत थोड़े बतलाये हैं। ऐसे । सम्यग्दष्टियोंकी संख्या वो तोन हो बसलाई है। अथवा दुर्लभतासे चार पांच होना बतलाया है। सो हो । । स्वामिकातिकेयानुप्रेक्षाको संस्कृत टोकामें लिखा है विद्यन्ते कति नास्मबोधविमुखा संदेहिनो देहिनः प्राप्यन्ते कतिचित् कदाचित् पुनर्जिज्ञासमानाः क्वचित् ।। आत्मज्ञाः परमप्रमोदसुखिनः प्रोन्मीलन्त शो। द्वित्राः स्युबहवो यदि त्रिचतुरास्ते पंचषट् दुखभाः॥ तत्त्वज्ञामतरंगिणी नामके शास्त्रमें लिखा है गणिकचिकित्सिकतार्किकपोराणिकवास्तुशब्दशास्त्रज्ञाः । संगीतादिषु निपुणाः सुलभा न हि तत्त्ववेत्तारः॥ अर्थ-ज्योतिष, वैद्यक, न्याय, पुराण, शिल्प, व्याकरण, संगोत, श्रृंगार, मंत्र, तंत्र आवि प्रास्त्रोंमें निपुण विद्वान् तो इस संसारमें बहुत हैं परंतु आत्मतत्वको जाननेवाले विद्वान् इस संसारमें है ही नहीं, हैं तो बहुत दुर्लभ हैं एक दो होंगे वा दो चार होंगे अधिक नहीं है। प्रश्न-इस समय जो हजारों लाखों जैनो जैनधर्म पालन करते हैं सो क्या बिना सम्यग्दर्शनके पालन करते हैं । यदि वे बिना सम्यग्दर्शनके धर्म पालन करते हैं तो उनका पालन करना व्यर्थ है। भूसोको फूटनेके । समान उनका परिश्रम करना व्यर्थ है। उत्तर-जो लोग व्यवहार धर्मको छोड़कर शुद्धोपयोग अध्यात्म भाबों सहित अपनेको आत्मज्ञानी | सम्पत्यो मानते हैं वे दोनोंसे रहित होनेपर सम्यग्दर्शन रहित हो सकते हैं परंतु जो देवपूजा आदि व्यवहार- . याचारASA R ALESED
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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