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________________ सागर १२८ ] 11/1 अर्थात् भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष्क और सौधर्म तथा ऐशान स्वगौके देवोंके मनुष्योंके समान शरीर से प्रवीधार होता है। स्त्री पुरुषोंके परस्पर मंथुन सेवनको प्रवीचार कहते हैं । सो ऊपर लिखे देवोंके तो मनुष्योंके समान शरीरसे प्रवीचार होता है । तथा आगेके स्थगोंमें भिन्न-भिन्न रूपसे प्रयोचार होता है। जैसा कि मोक्षशास्त्र में लिखा है--- शेषाः स्पर्शरूपशब्द मनःप्रवीचाराः । -अ० ४ सूत्र ८ अर्थात् बाकी स्वर्गीमें स्पर्श, रूप, शब्द और मनसे प्रवीचार होता है । इसका भी अभिप्राय यह है कि सनत्कुमार माहेन्द्र स्वर्गके देव अपनी-अपनी देवांगनाओंके शरीरका स्पर्श या आलिंगन आदि करनेमात्रसे हो संतुष्ट हो जाते हैं। ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लांब, कापिष्ट स्वर्गके देव अपनी-अपनी देवांगनाओंका रूप देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं। शुक्र, महाशुक्र, सतार, सहबार स्वर्गौके देव अपनी-अपनी देवांगनाओंके शब्द वा उनके आभूषणाविकों के शब्द सुनकर ही संतोषको प्राप्त हो जाते हैं। आनत, प्राणत, आरण, अच्युत स्वर्गके देव अपनीअपनी देवांगनाओंको चितवन करने मात्रसे संतुष्ट हो जाते हैं। जिसप्रकार देव संतुष्ट होते हैं उसी प्रकार देवियां भी अपने-अपने स्वामीको देखने, उनके शब्द सुनने या उनको चितवन करने मात्रसे संतुष्ट हो जाती है। इस प्रकार सोलह स्वर्गीका प्रवीचार बतलाया। आगे सोलह स्वर्गौसे ऊपर प्रवीचार किस प्रकार है सो मोक्षशास्त्र में इसप्रकार लिखा है परे ऽप्रवीचाराः । - अ० ४ सूत्र ९ अर्थात् सोलह स्वर्ग से ऊपर नौ ग्रैवेयक, नौ अनुदिश और पांचों पंचोत्तरोंके देव प्रवीचार रहित हैं उनके तज्जन्य वेदना नहीं होती इसलिये वे देव सबसे अधिक सुखी गिने जाते हैं ऐसा नियम है । २४३ - चर्चा दोसौ तैंतालीसवीं प्रश्न- यदि किसी मुनिके फोड़ा वा घाव हो जाय तो भक्त भावकजन उसको अच्छा करनेके लिए किसी शस्त्रके द्वारा उसकी चीर-फाड़ कर सकते हैं या नहीं। धीर-फाड़ करने से उनको अधिक वेदना होगी सो करनी चाहिये या नहीं । समाधान – किसी फोड़े वा घावको किसी शस्त्रसे चीरा बेनेमें निर्णय भाव नहीं होते किन्तु उसको [१२
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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