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________________ सागर ५१५ ] Re14 २३१ - चर्चा दोसौ इकतीसवीं तीसरे वर्ष में एक अधिक मास ( लोंदका महीना ) होता है। जो संसारमें भी प्रसिद्ध है और ज्योतिषके गणितशास्त्र में भी लिखा है । सिद्धांतशिरोमणिमें लिखा है ---- द्वात्रिंशद्भिर्गतैर्मासैर्दिने षोडशमेव च । चतुर्थघटिकानां च यतितोधिकमासकः ॥ अर्थ- बत्तीस महोना सोलह दिन और चार घड़ी बीत जानेपर एक अधिक मास होता है। ऐसा ज्योतिषशास्त्रों में लिखा है। तथा पंचांग आदिमें भी लिखा जाता है और व्यवहार में भी ऐसा ही बर्ताव किया जाता है। सो जनमत इसका वर्णन किया है या नहीं? समाधान -लघु हरिवंशपुराण, बृहद्हरिवंशपुराण, उत्तरपुराण आदि ग्रंथोंमें लिखा है कि यादव लोग अब द्वारिकासे निकल गये थे और फिर वापिस आये थे तब वे अधिक मासको भूल गये थे। इसीलिए द्वारिकाके भस्म होते समय सब जल गये थे, ऐसा वर्णन है। तथा त्रिलोकसारमें लिखा है कि एक महीने के साथ एक दिन बढ़ता है । इस हिसाब से तोस महीने में तीस दिन बढ़ जाते हैं अर्थात् ढाई वर्षमें एक महीना बढ़ जाता है। अथवा पांच वर्ष में वो महीने बढ़ जाते हैं। यथा इगमासे दिणवड्ढी वस्से बारह दुवस्सगे सदले | अहिओ मासी पंचयवासप्पजगे दुमासहिया ॥ ४१० ॥ प्रश्न- हीनमास किस प्रकार होता है ? उत्तर --- मुहूर्तचिंतामणिमें लिखा है कि इष्टार्कसंक्रांतिविहीनयुक्तो, मासोधिमासः क्षयमासकस्तु । अर्थात् - यदि एक अमावस्यासे लेकर दूसरी अमावस्या तक एक महीने में यदि वो संक्रांति पड़ जाँय तो वह क्षयमास गिना जाता है। ऐसा परमतके ज्योतिषशास्त्रमें लिखा है। जैनमतके शास्त्रोंमें इसका विशेष वर्णन देखने में नहीं आया । प्रशन - अधिक मासमें कार्य अकार्यको विधि किस प्रकार करनी चाहिये ? ११५
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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