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पर्चासागर 1५१४]
A आजीविका चला रहे हैं। द्वीपावली, यमद्वितीया, अक्षय नोमा पूर्णिमा, मकर संक्रांति, कर्क संक्रांति, माघकृष्णा
सुपी, माघशुक्ला पंचमी, हाला, गोरी, दोलोत्सव, नवदुर्गा, रावणवध, वशमी (चैतसुवी वशमी ) अभय तृतीया, पारक्षिक बंधन, गोवत्सार्चन, श्राद्ध और वर्ष दिनको छब्बीस एकावशी आदि अनेक रूपसे धर्मको रचना कर डाली है। इसी प्रकार मुसलमान, ईसाई आदि यवन लोगोंने भी अनेक फुशास्त्रोंकी रचना कर । अपने-अपने परम्परा स्थापन करने के लिए अनेक कुशास्त्रोंकी रचना कर डाली है। सो सब मिथ्यात्व है, ऐसा जानना।
२३०-चर्चा दोसौ तीसवीं ज्योतिष्काः सूर्याचंद्रमसौ ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च ।। १२ ॥
मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ॥ १३॥ -तत्त्वार्थसूत्र अ० ४ सूत्र १२
अर्थ—सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और चारों ओर फैले हुए तारे ये पांच प्रकारके ज्योतिषो देव हैं। सो ये सब ज्योतिषो देव ढाई द्वीपमें मेरु पर्वतको प्रदक्षिणा दिया करते हैं।
तस्कृतः कालविभागः। -तस्वार्थसूत्र अ० ४ सूत्र १४ प्रश्न-इन्हीं घूमते हुए ज्योतिषी वेवोंसे कालका विभाग होता है। ऐसा सूत्रोंमें कहा है । सो ये ज्योतिषी देव जो मेरुको प्रदक्षिणा देते रहते हैं सो कुछ अन्तरसे देते हैं या मेरुसे लगकर ही घूमते हैं।
समाधान-मेरु पर्वतसे ग्यारहसौ कईस योजन हटकर साधारण तारे तथा प्रह, नक्षत्र घूमते हैं। सूर्य, चन्द्रमा मेरु पर्वतसे बहुत हटकर जम्बूद्वीपको परिषिके समीप जाकर घूमते हैं। उसमें भी उत्तरायण, दक्षिणायन होते रहते हैं सो उत्तरायणके समय कम अन्तर रहता है और दक्षिणायनके समय अधिक अन्तर रहता है । ऐसा त्रिलोकसारमें लिखा है। यथा--
इगवीसेयारसयं विहाय मेरु चरति जोइगणा।
___ चंदतियं वज्जित्ता सेसा हु चरंति एक्कपहे ॥ ३४५ ॥
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