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________________ वर्षासागर - ५०१ ] I शुद्ध मूलसंघके एक साधु, एक अर्जिका, एक आवक, एक भाविका ये चार धर्मात्मा रहेंगे । ये चारों कल्कीके द्वारा उपसर्ग पाकर संन्यास धारण कर स्वर्गलोक जायेंगे । सो हो लिखा है--- तत्तोण कोवि भणिऊ गुरुएणहरपु गवेहि मिच्छत्तो। पंचमकालवसाणे मित्थादंसणविणासेहिं ॥ एक्कोविय मूलगुणो वीरं गयणा मउज्जई होई । सो अप्पसुदेविवरं वीरोब्व जणं यब्वोई ॥ ऐसे वाक्य हैं। इनके सिवाय अन्यत्र भी लिखा है I सहसाणिवरस वीसा ण वसई पंच एवं सच हयदरु । वे घडिय वे वलियं विहरति वीरणि धम्मं ॥ प्रश्न - यह कथन यहां क्यों लिखा क्योंकि अन्यमतका लिखना तो ठीक है परन्तु घरके एक धर्मके विरुद्ध तो नहीं लिखना चाहिये । उत्तर - आपका कहना ठीक है । परन्तु जीवोंके परिणामोंके अंश कितने हो तरहके हैं। धर्मके अनेक अंग हैं इनमें से किसीके परिणाम कहीं धर्मसाधन करते हैं और किसीके अन्य किसी अंग में धर्मसाधन करते हैं । farare as feat अंग में भाव लगते हैं और किसीके किसी अंगमें किसीका मन कथामें लगता है। किसीप्रथमानुयोग में, किसीका करणानुयोगमें, किसीका चरणानुयोग में और किसीका प्रव्यानुयोग में मन लगता है। किसीका मन आक्षेपिणीमें, किलोका विक्षेपिणीमें, किसीका संवेगिनी में और किसीका निर्देदिनी कयामें लगता है। इसी प्रकार किसोका मन छहों रसोंके स्वादिष्ट भोजनोंमेंसे किसी रसके भोजनमें लगता है। किसीको कोई रस अच्छा लगता है। राग-रागिनी अनेक प्रकार हैं उनमेंसे किसीको कोई राग अच्छा लगता है और किसीको कोई रागिनी अच्छी लगती है। इसी प्रकार चर्चाएं अनेक प्रकार की हैं। किसीका मन किसी चर्चा प्रसन्न है और किसीका किसी चर्चासे प्रसन्न है । इसीलिए यहाँ पर यह चर्चा लिखी है कुछ राग-द्वेष वा अभिमान वा ईव्यसेि नहीं लिखी है। यदि इससे किसीके राग-द्वेष उत्पन्न हो तो हम उससे क्षमा माँग लेते हैं। प्रश्न - यह जो कुदेवोंकी स्थापना हुई है सो इसका कारण क्या है ? समाधान --- जिस प्रकार कुदेवोंकी स्थापना हुई है उसका स्वरूप लिखते हैं। किसी एक समय स्वर्गलोकमें नौवें बलभद्रके जीवने विचार किया कि श्रीकृष्ण कहाँ है? अवधिज्ञानसे मालूम हुआ कि वह बालुकाप्रभा नामकी तीसरी पृथिवीमें है। वह बलभद्रका जीव तीसरे नरकमें पहुंचा । कृष्णके जीवको धर्मोपदेश दिया । [901
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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