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________________ चर्चासागर [ ४२ ] == = = TJM_______ 23. पर क्या धारण करता हुआ यह पीछे लौट आया। उसको लौटकर आते हुए देखकर पुत्रने पूछा कि आप पीछे क्यों आये । स्त्रीने कहा कि लाजका मुहूर्त ऐसा है जो आजका बोया धान्य बारह महीने तक निबट नहीं सकता। आज तू लौट क्यों आया। इन सबको हंजेने उत्तर दिया कि में इस संसारमें बाइसे जोवनके लिए ऐसा हिंसारूप पाप नहीं करता। यह सुनकर स्त्री, पुत्रने क्रोधकर उसको घरसे बाहर निकाल दिया। तब वह हंजा बनकर माणिक ऋषिके समीप आया और यति बनने की वीक्षा माँगने लगा | माणिक ऋषिने कहा तू जातिका टेड है इसलिए तुझे दीक्षा लेनेका अधिकार नहीं है । सब हंजेने कहा - "यह पुद्गल हो शूद्र है जोब तो शूद्र नहीं है ।" इस प्रकार अद्वैत ब्रह्मज्ञानका निरूपणकर ऋषिसे दीक्षा ले ली। ये माणिक ऋषि चतुर्मास तक तो वहाँ रहे फिर वहाँसे बाहर चले गये । किसी एक दिन माणिक गुरु किसी श्रावकके घरसे कसारके लाडू लाये थे सो उनका बाँट कर हंजाको दूरसे हाथ बढ़ाकर बिना उसको छुए दिया और उसे दूर बिठा दिया तब हंजेने कहा कि पहले तो भोजन में इतना जुखापन नहीं था अब इतना जुदापन क्यों दिखलाते हो इसपर दोनों में विवाद हो गया और माणिक ऋषिने उस इंजेको अपने यहांसे निकाल दिया । तब हंजेने सोचा कि अब क्या करना चाहिये अब तो दूसरा नया त स्थापन करना चाहिये। ऐसा विचारकर अहमदाबाद आया वहाँ पर एक हंजा नामके पोरकी कुछ चमत्कार दिखानेवाली कबर थी । वहाँपर जाकर वह सात दिन तक भूखा रहा तब वहाँ बालोंने पीर बनकर कहा कि तू गुरुद्रोही है इसलिए हमारी दरगासे चला जा तेरा मुँह देखने योग्य नहीं है। तब हंजेने उसकी बड़ी स्तुति की उसको प्रसन्न किया। सब पीरने कहा - " यदि तू मेरा नाम चलायेगा जैसा मैं हूँ उसी प्रागंले चलेगा तो तेरा मत चलेगा। तू सब ओरसे मलिन रहना, मुँहपट्टी सदा रखना, शूद्र आदि सबके घरको भिक्षा लेना, बर्तन धोनेका वा और भी ऐसा ही उच्छिष्ट पानी पीना इस प्रकारको मलिनता रखना। यदि कोई तुझे वन्दना करे तो बबलेंमें धर्मलाभ नहीं कहना किन्तु हांजी कहकर मेरा नाम लेना ऐसा तू कर तब उस इंजेने सब स्वीकार किया । इस प्रकार सम्वत् पन्द्रहसौ पिचासीके भादोंसुदो अष्टमी रविवारके दिन ऊपर लिखे हुए कामतसे उस हंजा नामके ढेडने यह दूँ दियाओं का मत चलाया और नाहंजा पीरको सहायताले चलाया है । कालांतर में उसमें बाईस यति और आकर मिल गये। उनके नाम ये हैं- संघनाथ १, भीष्म २,
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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