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________________ दर्यासागर EिPANJASTHAN ११. केवलोको छींकका सभाष मानना। १२. सुनन्दा ब्राह्मणो मिथ्यादृष्टिनी और असंयमी थी तो भी उसका सत्कार करनेके लिए भगवान महावीर स्वामीकी आज्ञासे गौतम स्वामीका उसके सामने जाना। १३. स्त्रियोंके महानतका सद्भाव मानना । १४. स्त्रियोंके केवलज्ञानकी उत्पत्ति मानना । १५. स्त्रियोंको मोक्षको प्राप्ति होना मानना । १६. दीक्षा लेनेके बाद तोपतरोंको इन्द्र श्वेत वस्त्र देता है सो साधु अवस्थामें तीर्थङ्कर उन्हीं इन्द्रके दिए हुए सफेद वस्त्रोंको पहिनते हैं । दोक्षा लेनेके बाद भी तीर्थकर नग्न नहीं रहते ऐसा मानना। १७. जिनप्रतिमाके लंगोट और करधनीका चिह्न मानना। १८. मल्लिनाथ तीर्थङ्करको स्त्री मानना अर्थात् उनको पुरुष न मानकर मल्लियाई कहना। १९. देवता लोग युगलियोंका छोटा शरीर बनाकर उनको भरत क्षेत्रमें लाये थे उनसे हरिवंशको उत्पत्ति मानना। २०. श्रीमहावीर तपश्चरण कर रहे थे उस समय किसी मवालियेने आकर उनके कानमें लोहेके कीले ठोंक दिये तब महावीर स्वामीने पुकार को और पुकारनेके लिए पर्वत पर चढ़े ऐसा मानना।। २१. साधु लोग दण्ड, पात्र, ओंधा, पुंजणी, बड़ो पोती, कवल, मुहपट्टी आदि चौदह उपकरण रखते । हैं, ये धमके सापन है, इनके रखने में दोष नहीं है ऐसा मानना। २२. श्रीमुनिसुव्रतनाथके एक घोड़ा मणधर हुआ था ऐसा मानना। २३. साधु लोग श्रावकोंके घरसे अपने पात्र में आहार, पानी लाकर अपने उपाश्रयमें खा लेधै तो कोई दोष नहीं है ऐसा निरूपण करना । २४. यदि आहार बाकी बच जाय तो तेला आदि अधिक उपवास करनेवाले साधुओंको उपवासमें ही खिला देनेको निर्दोष मामना । २५. यवि गर्म जलके मिलने की विधिन बने तो अपने पेशाब पीनेको भी निर्दोष मानना।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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