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सागर
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जाकर कहा कि महाराज इस मलिन भेषको हंसी हमारे सामने हुई है । इसलिये इस भेषको तो छोड़ो और ये सफेद वस्त्र धारण करो तबै उन सब भ्रष्ट मुनियोंने सफेद वस्त्र धारण कर लिये । तदनंतर ये राजा रानी उनको उत्सवके साथ अपने नगरमें लाये और उन्होंने बड़ी भक्ति की । तबसे यह अफाल्कों का मत श्वेत वस्त्र धारण करने से श्वेतांबर कहलाया। इस प्रकार राजा विक्रमके मरनेके एक सौ छत्तीस वर्ष बाद श्वेताम्बर मत प्रगट हुआ । सो ही भद्रबाहुचरित्र में लिखा है-
मृते विक्रमभूपाले पत्रिंशदधिके शते । गताब्दानामभूल्लोके मतं श्वेताम्बराभिधम् ।
इन्हीं श्वेताम्बरियोंमें एक जिनचन्द्र नामका श्वेताम्बर हुआ है। उसने सूत्रोंमें अनेक प्रकारको विपरीत रचना की है। उसने उन सूत्रोंका नाम आचारांग सूत्र आदि नाम रक्खा है और उनमें मूलसंघसे अत्यन्त विरुद्ध कथन किया है। उन विरुद्ध बातोंमेंसे कुछके नाम यहाँ लिखते हैं ।
१. केवलज्ञानीके कबलाहारका सद्भाव मानना ।
२. केवलज्ञानीके रोगोंको उत्पत्ति मानना ।
३. केवलज्ञानीके मलमूत्रका नीहार मानना ।
४. केवलियोंके परस्पर नमस्कार करनेका व्यवहार मानना ।
५. केवलज्ञानोके उपसर्गका सद्भाव मानना ।
६. जिनबिम्बोंके आभूषणोंका सद्भाव मानना ।
७. तीर्थकुरोका पाठशालामें पढ़ना ।
८. केवलकी पहिलो वाणीका व्यर्थ जाता ।
९. श्रीवर्द्धमान स्वामीका बेवनन्दा ब्राह्मणीके गर्भमें तिरासी विनतक रहना और इन्द्र के द्वारा उस गर्भको वहाँसे उठाकर त्रिशला नामकी क्षत्राणीके गर्भ में रखना । इस प्रकार श्रीमहावीर स्वामीका गर्भापहरण करना ।
१०. श्री ऋषभदेव तीर्थङ्कर और उनकी रानी सुनंदाको घुगलिया मानना अर्थात् श्रीऋऋषभदेवने अपनी सगी बहन के साथ विवाह किया मानना ।
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