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fआदिके माने हुए ) अनुमानके लक्षणमें सन्देह हुआ था। उस समय पपावती देवीने रात्रिमें ही श्री पार्श्वनाथ
को मूर्तिके मस्तकपर रहनेवाले सर्पके फणापर अनुमानका लक्षण लिख दिया था और पात्रकेसरीको स्वप्नमें
उस मन्दिरके दर्शन करनेके लिये कहा था । पात्रकेसरीने प्रातःकाल होते ही भगवान के दर्शन किये उन लिखे [HETAहुए श्लोकोंको देखकर अपना संदेह दूर किया। यह कथा प्रसिद्ध है । इसके सिवाय श्रीमाधनंदि मुनिकृत जयमालामें भी पार्श्वनाथको स्तुतिमें सर्पके फणाका वर्णन किया है यथा
फणिमणिमण्डितमण्डपदेहं । पार्श्वनि जगतहत संदेहम् ।। पण्डितप्रवर बनारसीदासजीने लिखा है
"सजल जलद ननु मुकुट सपत फण” इत्यादि इस समय सैकड़ों वा हजारों वर्षोंकी प्रतिमा विखाई पड़ती हैं जिनपर फणाका चिन्ह है। इसलिये ऐसी प्रतिमाओंकी जो मन वचन, कायसे अवज्ञा करता है उसे जिनमतका विरोधी समझना चाहिये। प्रकार भगवानके पांचों ही कल्याणक पूज्य है । केवल एक या दो नहीं।
२२६-चर्चा दोसौ उनतीसवीं प्रश्न--पहले हुण्डावसपिणी कालदोषसे विपरीत आवि पांच प्रकारके मिथ्यात्व बतलाये सो इन पांचों मिथ्यात्वोंका स्वरूप क्या है?
समाधान-इनका विशेष स्वरूप तो जैन ग्रन्थों में प्रसंगानुसार महो तहाँ बहुत लिखा है। तो भी यहाँ बहुत संक्षेपमें लिखते हैं । पाँच मिथ्यात्वोंके नाम ये हैंएयंतं संसइयं विवरीयं विणयजं महामोहं । अण्णाणं मिच्छंतं णिदिलृ सब्वदरसी हि ।
अर्थ-एकांतमिथ्यात्व, संशयमिथ्यात्व, विपरीतमिथ्यात्व, विनयमिथ्यात्व और अज्ञानमिथ्यात्व ये पाँच प्रकारके मिथ्यात्व भगवान सर्वज्ञ देवने कहे हैं। अब इनका अलग-अलग स्वरूप बतलाते हैं।
जो जीवोंके स्वरूपको क्षणिक बललाते हैं, यह जीव क्षण-क्षण में बदलता रहता है पहला नष्ट हो जाता है और क्षण-क्षण में नया उत्पन्न होता रहता है। इस प्रकार कर्मोको करनेवाला अन्य जीव है और