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'विधाय चाक्षरभेण्यावर्णाप्तर्ग पदास्पदम् ।
शब्दार्थचिंत्तनं भूयः कथ्यते मानसो जपः ॥ २६ ॥ बासागर
मानसः सिद्धिकाम्यानां पुत्रकाम उपांशुकः । [२७]
वाचिको धनलाभाय प्रशस्तो जप ईरितः ॥ २७ ॥ वाचिकस्त्वेक एव स्यादुपांशु शत उच्यते ।
सहस्रं मानसं प्रोक्तं जिनसेनादिसूरिभिः ॥ २८॥ आचार्योने णमोकार मंत्र आदि मंत्रोंके जपनेको विधि इस प्रकार बतलाई है।
२५-चर्चा पच्चीसवीं प्रश्न-ऊपरके जो जपके भेव बतलाये हैं वे किस आसनपर बैठकर करना चाहिये ?
समाधान-सफेद वस्त्रके आसनपर, सया हल्दोके रेंगे हुये वस्त्रके आसनपर व सबसे उत्तम लाल बस्त्रके आसनपर वा डाभके आसनपर बैठकर जप करना चाहिये। णमोकार मंत्रका वा अन्य मंत्रोंका जप
करनेके लिये अपथा भगवान अरहन्तदेवको पूजा करनेके लिये ऊपर लिखे चार प्रकारके आसनोंमेंसे किसी एक । आसनपर बैठकर जप या पूजन करनेका विधान आचार्योने बतलाया है।
इनके सिवाय और भी अनेक प्रकारके आसन हैं परंतु उनपर बैठकर कभी भी जप या पूजा नहीं Pt करनी चाहिये। जो मनुष्य इन ऊपर लिखे चार आसनोंके सिवाय अन्य आसनोंपर बैठ कर पूजा वा जप
करता है उसका फल उसके लिये बहुत बुरा होता है जैसे-जो बांसके आसनपर बैठकर पूजा वा जप करता है उसके दरिद्रता बनी रहती है । जो पाषाणको शिला आविपर बैठकर पूजा वा जप करता है उसके रोगको । पीडा बनी रहती है। जो पृथ्वोपर बैठकर पूजा वा जप करता है उसके सदा दुर्भाग्य ( भाग्यहीनता वा बदनसीबी ) बना रहता है। उसका सौभाग्य कभी नहीं रहता। जो तृण वा धासके आसनपर बैठकर पूजा १. मानसिक जप मंत्रके जो अक्षर है वे एक अक्षरके बाद दूसरा अक्षर । एक पदके बाद दूसरा पद और एक शब्दके बाद दूसरा
शब्द मय अर्थके चितवन किया जाता है।