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पर्चासागर [२६]
समाधान--स्वरके तीन भेद हैं उदात्त, अनुदात्त और स्वरित । जिसमें इन तीनों प्रकारके स्वरोंका उच्चारण स्पष्ट हो ऐसे मंत्रोंके अक्षर पद और शब्दोंको स्पष्ट और शुद्ध रोतिसे उच्चारण करना और इस
प्रकार उच्चारण करना जिसको सब सुन लें उसको वाचिक कहते हैं तथा जिसमें उदात्त, अनुदात्त, स्वरितके । । भेवसे अक्षर, पद, शब्दोंका उच्चारण शुद्ध तथा स्पष्ट हो परन्तु उस उच्चारणको कोई दूसरा सुन न सके। है उसको उपांशु कहते हैं । वाचिक और उपांशुमें सुनने न सुननेका हो अंतर है । वाधिक जपको सब सुन सकते है हैं और उपांशु जपको पास बैठनेवाला भी नहीं सुन सकता तथा अपने मनको एकान कर अपने ही मनके द्वारा चितवन करना और वह चितवन इस प्रकार करना जिसमें मंत्रोंकी जो अक्षरमाला है मंत्रोंमें जो । अक्षरोंका समुदाय है उसके अनर, पद और शब्द सब शुद्ध तथा स्पष्ट चितवन करने में आ जायें ऐसे जपको । मानसिक जप कहते हैं।
इनका फल इस प्रकार है। मानसिक जप समस्त कार्योको सिलिके लिये किया जाता है. उपांश जप पुत्रप्राप्तिके लिये किया जाता है और वाचिक धनलाभके लिये किया जाता है तथा वाधिकका फल एक गुना है, उपांशुका फल सौ गुना है और मानसिक जपका फल हजार गुना है। ऐसा श्रीजिनसेनाचार्यने
वाचिकाख्य उपांशुश्च मानसस्त्रिविधः स्मृतः। प्रयाणां जपमालानां स्याच्छ्रेष्ठो छु त्तरोत्तरः ॥ २३ ॥ यदच्चनीचस्वरितैः शब्दैः स्पष्टपदाक्षरैः। मंत्रमुच्चारयेद्वाचा जपो रोयः स वाचिकः ॥ २४ ॥ शनैरुच्चारयेन्मंत्रं मन्दमोष्ठौ प्रचालयेत्। अपरैरभुतः किंचित्स उपांशुर्जपः स्मृतः ॥ २५ ॥
१. उपांशु मंत्रमें धीरे-धीरे ओठ चलते हैं पर सुनाई नहीं पड़ता।