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पर्चासागर
SAIRATAAR
चामानाALATASTHAN
शान, अनंतसुख और अनंतवीर्य इन चारों अनंत चतुष्टयोंसे सुशोभित हैं परन्तु यह बात सत्य नहीं है क्योंकि ज्ञान और बर्शन तो एक हैं । जो जानना है वही देखना है और जो देखना है वही जानना है। इसलिए अनंतबर्शन वा अनंतनानमेंसे एक ही रह सकेगा शेनों नहीं बन सकते।
समाधान-शान दर्शन एक नहीं है किन्तु जुदे जुदे हैं। ज्ञानका कार्य केवल जानना है और दर्शनका कार्य केवल देखना है। जिस प्रकार अंधा पुरुष मार सकता है परन्तु देत हो सकता और लंगडा पुरुष देख
सकता है परन्तु दूर म जा सकनेके कारण पूरके पदार्थोको जान नहीं सकता। छोटा बच्चा अनेक पदार्थोको । देखता है परन्तु जानता नहीं। इससे सिद्ध होता है कि वर्शन अलग पवार्थ है और शान अलग पवार्थ है "शनाषः वर्शनं पंगु" जैसे अंधा और लंगड़ा शोनों मिल जाय तो अपने कार्यकी सिद्धि कर सकते हैं। उसी प्रकार
ज्ञान दर्शन दोनोंसे ही पदार्थका स्वरूप जाना जाता है। दोनों हो आत्माके अलग-अलग गुण है। इसलिए । अनन्त चतुष्टय अच्छी तरह सिद्ध हो जाता है।
प्रश्न-यदि अरहंत भगवान देखते हैं और जानते हैं तथा त्रिलोकवती समस्त पदार्थोको और उनकी तोनों कालमें होनेवाली समस्त पर्यायोंको प्रत्यक्ष देखते और जानते हैं तो फिर कहना चाहिये कि वे बड़े निर्दयो हैं। क्योंकि संसारी जीव नरकादिक गतियों में अनेक प्रकारके दुख पा रहे हैं उनको देखते जानते हुए भी बचाते। नहीं । हमारे ईश्वरके समान अवतार धारण कर सबको रक्षा करना चाहिये । सो अरहन्त देव करते नहीं। इसलिये कहना चाहिये कि वे बड़े निर्दयी हैं।
AKSHARMA
१. प्रत्येक पदार्थ में सामान्य और विशेष दो धर्म रहते हैं ऐमा कोई पदार्थ नहीं है जिसमें ये दोनों धर्म न रहते हों तया में दोनों
धर्म अविनाभायी हैं। एक दूसरेके साथ रहते हैं। बिना सामान्य के विशेष नहीं रहता और बिना विशेष सामान्य नहीं रहता। लिखा है "निविशेषं हि सामान्यं भवेत्सर विषाणवत्। विशेषरहितत्वाच्च विशेषस्तद्वदेव हि ।" अर्थात् बिना विशेष के सामान्य गधके सीमके समान अभावरूप हो रहता है। इसी प्रकार बिना सामान्यके विशेष भो गधेके सींगके समान है। इससे सिद्ध होता है कि पदार्थका स्वरूप उभयास्मक है। तथा आस्माका समस्त पदार्थोका जानता है। पदार्थों में जो सामान्य गुण है उसका ॥ ज्ञान होना दर्शन है और विशेषका ज्ञान होना ज्ञान है। इसीलिए ज्ञान साकार है और दर्शन निराकार हैं दर्शनमे "यह घट है यह पट है" ऐसा आकार नहीं होता है। ज्ञानमें यह आकार होता है । आत्मामें ज्ञान गुण अलग है इसलिये उसको ढकनेवाला ज्ञानावरण कर्म अलग है। तथा दर्शन गण अलग है इसलिए उसको तकनेवाला दर्शनावरण कर्म अलग है। इस प्रकार हर तरहसे दर्शन और शान दोनों गुण अलग-अलग सिद्ध होते हैं ।