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________________ सागर ४३४] जन्यमान्याममायाdmaARISATTARARIES मांसाहारी पुरुषोंके आचरण कुत्तोंसे भी गपे बोते हैं। देखो राजा, महाराजा आदि बड़े-बड़े मांसाहारी पुरव मांसके लोभसे धनमें शिकार खेलने जाते हैं। हमार जग शिकारी कुने रहते हैं तथा उन कुत्तोंको । पालने वाले चांडाल आदि भी साथ रहते हैं। उन चांगलोंको उच्छिष्ट वा झूठन वे कुत्ते खाते ही हैं। ऐसे कुत्तोंको हिरण, सांभर, रोज आदि जंगली जानवरोंपर छोड़ देते हैं वे कुत्ते अपने मुंहसे उन पशुओंको पकड़ । लेते हैं तथा मारकर ले आते हैं। फिर उसका शरीर फाड़कर मांस निकालते हैं और वे राजा, महाराजा आदि बड़े आवमी उस मांसको खा जाते हैं। भला सोचनेकी बात है चांडाल वा मुसलमान आदिको मूठन खानेवाले शिकारी कुत्तोंके मुहसे पकड़ा हुआ यह मांस बड़े-बड़े पुरुषोंके द्वारा खाया जाता है। सपा वे बड़ेबड़े पुरुष उस कुत्तोंकी झूठन मांसको खाकर अपनेको बहुत कुछ कृतार्थ मानते हैं। एक तो वह मांस दूसरे । कुत्तोंकी झूठन परंतु फिर भी लोग उसे खा जाते हैं ऐसे मांसको खानेवाले संध्या, आचमन भी करते हैं, नमाज पढ़ते हैं, रोजा रखते हैं, हज करते हैं और इन कामोंको करते हुए अपनेको बहुत कुछ कृतार्य मानते हैं। परन्तु विचार करनेपर वे सब चांडालके समान वा कुत्तोंके समान अस्पृश्य मालूम होते हैं। कदाचित् यहीपर कोई वेवांती यह कहे कि ये सब जोवारमा प्राणी मात्र इस ब्रह्मांडमें सृष्टि मात्रके भूत वा प्राणो हैं वे सब सदा जीवित रहते हैं। वे किसीके द्वारा मारे नहीं जाते। यह जीव अनाविकालसे जीता आई रहा है, वर्तमानमें जी रहा है, और आगे जीवेगा। न कभी मरा है, न कभी मरेगा इसलिये क्या पालन करना। व्यर्थ है । क्योंकि किसी भी जीवको कभी हिंसा होती ही नहीं है। परन्तु वेदान्तीका यह कहना सर्वथा मिथ्या । है। और महा अनर्थका मूल है। क्योंकि यदि यह जीव अमर है कभी मरता हो नहीं तो फिर माय, ब्राह्मण आदि की हत्या करनेवालेको हत्यारा क्यों कहते हो ? तथा जब तक उसे प्रायश्चित्त नहीं दे लेते तब तक उसे है पंक्तिबाह्य क्यों रखते हो ? स्त्री, बालक, राजा, कन्या, ब्राह्मण, गरु, गाय, मुनि आदिको हिंसा करनेवालेको महापापी क्यों कहते हो ? यदि जीवको सर्वथा अमर मानोगे तो अन्य जीवोंकी हिंसा करनेसे पाप उत्पन्न होता है और ऊपर लिखे स्त्री, बालक आदि जीवोंकी हिंसा करनेसे महापाप उत्पन्न होता है। ग्रह जो शास्त्रोंने । लिखा है सो सब व्यर्थ हो जायगा परन्तु यह शास्त्रोंका लिखना कभी व्यर्थ नहीं हो सकता और तेरा कहना कभी सत्य नहीं हो सकता क्योंकि पुराणों में लिखा है कि माय, ब्राह्मण आविको घया पालनी चाहिये उनको ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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