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र्चासागर
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सद्य,
ब्राह्मणके ये हो लक्षण हैं इन लक्षणोंके बिना केवल अपने आप ब्राह्मण बननेवाले कभी ब्राह्मण नहीं हो सकते । जिसमें ऊपर लिखे ब्राह्मणके लक्षण हों और जो सम्यग्दर्शनसे सुशोभित हों वहीं ब्राह्मण मानने योग्य समझा जाता है । जिसके मादिका स्थान न हो, न सत्य भाषण करता हो, न तपश्चरण करता हो, न इन्द्रियों निग्रह करता हो और जो समस्त प्राणियोंकी क्या पालन भी न करता हो वह ब्राह्मण नहीं किन्तु चांडाल कहा जाता है। क्योंकि यह चांडालके लक्षण है। मद्य मांसाविका सेवन करनेवाला कभी ब्राह्मण नहीं हो सकता ।
प्रश्न- यदि यह बात है तो धर्मकी उत्पत्ति किस प्रकार है, ऐसा प्रश्न अर्जुनने श्रीकृष्णसे पूछा है । सो ही भारत शांतिपयमें लिखा है
कथमुत्पद्यते धर्मः कथं धर्मो विवर्द्धते । कथं च स्थाप्यते धर्मः कथं धर्मो विनश्यति ॥
अर्थ -- अर्जुन पूछते हैं कि हे भगवन् ! धर्म किस प्रकार उत्पन्न होता है कि किन-किन कारणों से बढ़ता है किस प्रकार ठहरता है और किस प्रकार नाशको प्राप्त होता है। इनका उत्तर जो श्रीकृष्णने दिया है यह इस प्रकार है । जैसा कि भारतमें लिखा हैसत्येनोत्पद्यते धर्मोदयादानेन वर्द्धते । क्षमया स्थाप्यते धर्मों क्रोध लोभाद्विनश्यति ॥
अर्थ — सत्यव्रतले सो धर्म उत्पन्न होता है । वया पालन करने और वान देनेसे बढ़ता है समस्त जीवोंपर क्षमाभाव धारण करनेसे धर्मकी स्थिरता रहती है तथा क्रोध और लोभसे धर्मका नाश होता है । तस्य व्यर्थाणि कर्माणि सर्वे यज्ञाश्च भारत ! । सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च यः कुर्यात्प्राणिनां वधः ॥ अहिंसा सत्यमस्तेयं त्यागो मैथुनवर्जनम् । एतेषु पंचसूक्तेषु सर्वे धर्माः प्रतिष्ठिताः ॥ २ ॥ अहिंसालक्षणो धर्मः अधर्म त्राणिनां वधः । तस्माद्धर्मार्थिना लोके कर्तव्या प्राणिनां दया ॥ धवं प्राणिव यज्ञो नास्ति यज्ञ हिंसकः । सर्वसस्वेष्वहिंसैव सदा यज्ञो युधिष्ठिर ॥४॥ अर्थ -- जो प्राणियोंका वध करता है उसको सब क्रियाएं, सब यज्ञ और समस्त तीर्थो पर किये हुए अभिषेक व्यर्थ है । क्योंकि अहिंसा, सत्य, परिग्रहका त्याग और मैथुन करनेका त्याग वा ब्रह्मचयंका पालन करना इन पांचोंमें ही सब धर्मोका समावेश हो जाता है। इस संसारमें अहिंसा वा किसी प्रकारकी हिंसा न
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