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चासागर
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. इसी प्रकार जो मांस भक्षण करते हैं उनके न तो गंगा है, न केवार, है, न प्रयाग है, न पुस्कर है,। नशान है, न ध्यान है, न जप है, न सप है, न भक्ति है, न दान है, न होम है, न पूजा है, न वंचना है। अर्थात् मांस भक्षण करने वालेकी सब क्रियायें व्यर्थ है । उसके किये हुये समस्त पुण्यकार्य भी व्यर्थ हो जाते है--निष्फल हो जाते हैं । इस प्रकार महा दोषसे भरे हुए मांसको जो तिल वा सरसों मात्र भी खाता है वह जब तक आकाशमें सूर्य चन्द्रमा रहेंगे तब तक घोर नरकमें सड़ता रहेगा। इस प्रकार मांस खानेका फल महा निय और नीच बतलाया है।
भारतमें लिखा है-श्रीकृष्ण पांडवोंसे कहते हैंस्नानोपभोगरहितः पूजालंकारवर्जितः । मधुमासनिवृत्तश्च गुणवान् तिथिर्भवेत् ॥
अर्थ-जिसने शहब और मांसका त्याग कर विया है वह चाहे स्नान उपभोगसे रहित हो और चाहे । तिलफ आदि पूजाके अलंकारोंसे रहित हो तो भो वह गुणवान् अतिथि माना जाता है । बहुतले लोग स्नान । आधमन, संध्या, तर्पण, तिलक, कंठी आदिका अभिमान करते हैं परन्तु उन्हें सोचना चाहिये कि सबसे मुख्य
शहद और मांसका त्याग है। जिसने शहद और मांसका त्याग नहीं किया है उसके स्नान, आचमन आविका कोई मूल्य नहीं है । बिना मांस, शहदका त्याग किये केवल स्नानाविक करने में कोई गुण नहीं है। शहद और
मांसका त्याग करना सबसे श्रेष्ठ है । शक्तिके उपासकोंको वा अन्य शहब मांस खानेवालोंको यह उपदेश बहुत ॥ अच्छी तरह समझ लेना चाहिये ।
कितने हो भेषमात्रको धारण करनेवाले वैरागी शहद और मांसका भक्षण करते हैं और शहद मौस1 को खाते हुये भी अपनेमें ब्राह्मगपना मानते हैं सो भो मिथ्या है। क्योंकि शहर और मांसका खाना ब्राह्मण
का लक्षण नहीं है किन्तु चांडालका लक्षण है । सो हो महाभारतके शांतिपर्व में लिखा हैमद्यमांसमधुत्यागी पंचोदुम्बरदूरगः । निशाहारपरित्यक्तः एतद्ब्राह्मणलक्षणम् ॥१॥ सत्यं नास्ति तपो नास्ति नास्ति चेंद्रियनिग्रहः। सर्वभूतदया नास्ति एतच्चांडाललक्षणम् ॥२॥
____ अर्थ-जिसके मद्य, मांस और शहद के भक्षण करनेका त्याग हो, बड़फल, पीपल फल, गूलर, पाकर, । अंजीर इस पांचों उबंबर फलोंका स्याग हो और जिसके रात्रिमें भोजन करनेका त्याग हो वही ब्राह्मण हैं।
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