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सोलह अक्षरका मन्त्र-"अहत्सिवाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः" अथवा "अरहंत सिद्ध आइ-1 रिया उचजमाया साह" है। छह अक्षरका मंत्र-"अरहंत सिद" पांच अक्षरका मंत्र-"असि आ उ सा" सागर
चार अक्षरका मन्त्र-'अरहंस' हे अथवा 'अर्हस्सिव' है। दो अक्षरका मन्त्र "सिद्ध" वा 'अहं' है। एक अक्षर
का मंत्र-४' वा 'अ' है। ये सब मन्त्र पंच परमेष्ठोके वाचक है । सब णमोकारमय हैं। इनके जप करने 1 की धा चिन्तवन करनेको विधि पहले लिख चुके हैं। वहाँसे जान लेना चाहिये।
ऐसे इस पंच परमेष्ठीके वाचक णमोकार मन्त्रको हमारा बार-बार नमस्कार हो । यह णमोकार मंत्र । संसारके परिभ्रमण और कर्मोदयसे उत्पन्न हुए अनेक प्रकारके दुःखोंको दूर करो तथा ज्ञानावरणादि माठों कोका नाश करो। इसके प्रसाबसे शुद्धात्मस्वरूपका और रत्नत्रयका लाभ हो, सुगति प्राप्त हो, समाधिमरण हो, भगवान अरहन्तदेवके अनंत चतुष्टय आविक छयालीस गुण प्राप्त हों। इस णमोकार मन्त्रके प्रसादसे हमारे ये सब पदार्थ प्राप्त हों ऐसी प्रार्थना है, वह पूर्ण हो । णमोअरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरिआणणभो उबझायाणं णमो लोए सव्वसाहणं
ऐसे इस णमोकार मंत्रका जप करो तथा भव भव यही हमारे शरण हो ।
हमने अपनी तुच्छ बुद्धिके अनुसार णमोकार मंत्रका स्वरूप बहुत थोड़ासा बसलाया है परंतु इसका । वर्णन करना महान कार्य है यदि इसमें कोई भूल रह गई हो तो विशेष बुद्धिमान लोग क्षमा करें।
२०५-चर्चा दोसौ पांचवीं प्रश्न-तीर्थकर आदिक पदवीधर पुरुषोंपर जो चमर बुलाये जाते हैं उनका प्रमाण क्या है ?
समाधान-श्री तीर्थकर केवली भगवानके तो सवा चौसठ चमर दुलते रहते हैं। चक्रवर्तीके बत्तोस लते हैं, नारायणके सोलह, महामंडलेश्वरके आठ, अधिराजके चार और महाराजके वो घमर दुलते हैं। सो हो लिखा है
[ ४०८ तीर्थकराणामिति चामराणि चत्वारि षष्ठयात्यधिकानि नित्यं । अद्धिमानानि भवन्ति तानि चक्रेश्वरायावदसो सुराजा।