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1 ठीक नहीं है। महादेव कभी भी शिवरूप वा देवोंके देव महादेव नहीं हो सकते। यदि महादेव ईश्वर हैं तो।
सब देवोंने सथा ऋषियोंने उसका लिंग क्यों काट डाला । जब उसका लिंग कट रहा था तब उसको ईश्वरता सामर
कहाँ चली गई थी। मा विशेष वर्णन धर्मपरीक्षासे जान लेना चाहिए । बहुतसे लोग इसी महादेवको विगतभय वा भयरहित कहते हैं परन्तु यदि वह भयरहित होता तो हाथमें त्रिशूल क्यों लिए रहता क्योंकि बिना भयके कोई शस्त्र धारण नहीं कर सकता । इसलिए वह भयरहित भी नहीं है इसी प्रकार इसको सबका स्वामी वा सबका नाथ कहते हैं परन्तु यदि वह सबका स्वामी होता तो भीख क्यों मांगता ? भिखारीके बिना
कोई भीख नहीं मांगता । इसलिए वह सबका स्वामी भी नहीं है। इसके सिवाय महादेवको यति कहते हैं । परन्तु यह भी ठीक नहीं बनता क्योंकि यदि वह यति होता तो गंगा, गौरो, भीलनी आविसे रमण कैसे करता? तथा यदि यह यति होता तो स्वामिकात्तिकेय आदि उसके पुत्र कैसे होते। यति तो वही हो सकता है जो समस्त विषय कवाय वा इन्द्रियोंको जोते। सो ये गुण उसमें है नहीं। इसलिए वह कभी यति नहीं हो सकता। यदि महादेव यति होता तो उसके पास लक्ष्मी क्यों नहीं दिखाई पड़ती। उसका तो स्वरूप महा बरिद्र है। उसके शरीरपर भस्म है, ओढ़ने-बिछानेको हिरणका चमड़ा है। हाथमें मनुष्यको खोपड़ी है। गलेमें मनुष्योंकि
डोंकी माला है, एक सर्व है, मस्तकपर जटाएं हैं। कमरमें लैंगोट है। अथवा नग्न रहता है। इस प्रकार । उसका भयङ्कर रूप है, श्मशानमें वह रहता है, श्मशानमें ही सोता है, बैठता है, लेटता है तथा भूत-प्रेतोंमें ,
त किस प्रकार हो सकता है। इसी प्रकार उसको अजन्मा वा स्वयंभ कहते हैं। जो बिना जन्मके स्वयंसिद्ध हो उसको स्वयंभू कहते हैं सो वह स्वयंभू भी नहीं हो सकता। क्योंकि यदि वह स्वयंभू । होता तो आमि उत्पन्न हुआ क्या कहलाता ? लोग उसको वेत्ता भी कहते हैं परन्तु वह वेत्ता होता तो अपने । । विघ्नोंको तो जानता? सो वह अपने विघ्नोंको भी नहीं जानता । इसलिए वह वेता नहीं है इसी प्रकार उसको
पशुपति कहते हैं इसी प्रकार उसको कितनी हो विरुद्ध चेष्टाएं या विरुद्ध नाम बतलाते हैं। उसको इस सृष्टिका पहरण करनेवाला वा मारनेवाला बतलाते हैं और शिव भी कहते जाते हैं। परन्तु जो घातक है यह शिव वा कल्याणरूप कैसे हो सकता है । इनका सिद्धांत है कि ब्रह्मा सृष्टिको उत्पन्न करता है, विष्णु रक्षा करता है । और शिव उसका संहार वा भक्षण करता है सो ऐसा अनर्थ करनेवाला महादेव शिवरूप वा मोक्षल्प कल्याणमय कभी नहीं हो सकता। सो हो लिखा है