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________________ सागर or ] शाय T कोई-कोई लोग ब्रह्मा को ही परमेष्ठी कहते हैं। लिखा भी हैब्रह्मात्मभूः सुरज्येष्ठो परमेष्ठी पितामहः । सो ठीक नहीं है पहलु हो जो राग बढ़ा लिया था, पात्र, दण्ड, कमआदि उसके सदा साथ रहनेवाले पदार्थ उसको अकृतार्थताको सिद्ध करते हैं। जिसने तपसे भ्रष्ट होकर और क्रोधित होकर इन्द्रादिक देवताओंसे युद्ध किया ऐसा रागी, द्वेषी, क्रोधी, ब्रह्मा, परमेष्ठी कैसे हो सकता है। जो क्षुषा, तृषा मावि अठारह दोषोंसे रहित हों और सर्वश हों ऐसे भगवान अरहन्तदेव ही ब्रह्मा कहे जा सकते हैं और वे ही परमेष्ठी कहलाते हैं । अकलङ्काष्टक स्तोत्र में लिखा है--- उर्वश्यामुदपादि रागबहुलं चेतो यदीयं पुनः । पात्री दंड कमंडलुप्रभृतयो यस्या कृतार्थस्थितिम् ॥ आविर्भावयितु भवन्ति स कथं ब्रह्मा भवेन्मादृशां । चाहिये । क्षुत्तृष्णाश्रमरागरोगरहितो ब्रह्मा कृतार्थोस्तुनः ॥ ऐसा श्री अलबेवकृत अफलकस्तोत्रमें लिखा है। तथा इनका विशेष स्वरूप धर्मपरीक्षा से जान लेना ब्रह्मा का अर्थ सबसे बड़ा है। जो सबसे बड़ा हो, सबसे प्रथम हो, पूज्य हो उसको ब्रह्मा कहते हैं ऐसे ब्रह्मा श्रीवृषभदेव हो हो सकते हैं और नहीं भगवान सिद्धपरमेष्ठीमें आठ गुण है । यथा सम्मत णाण दंसण वीरिय सुहमं तव अवगणं । अगरुलहु अव्यवाहं अट्ठगुणा होंति सिद्धाणं ॥ अर्थात् सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, बीर्य, सूक्ष्मत्व, अवगाहन, अगुरुलघु और अव्याबाध ये आठ गुण सिद्धों में होते हैं। इस प्रकार जो आठ गुणरूपी बाह्य लक्ष्मोसे तथा अनन्त गुणरूपी अन्तरंग लक्ष्मोसे सुशोभित हैं जो मोक्षरूप या शुद्ध आत्मस्वरूप सर्वोत्कृष्ट स्थानमें विराजमान हैं उनको सिद्ध परमेष्ठी कहते हैं । संसारमें बहुत से लोग महादेवको हो सब देवोंका देव, सबमें बड़ा देव महादेव वा शिवरूप कहते हैं सो [ ४०४
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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