________________
यहाँपर भी विभक्ति मावि सब पहले के समान समझ लेना चाहिये । व्याकरणके अनुसार नमः सिद्धेभ्यः ।। अथवा नमो सिमान् सिद्ध होता है । 'प्राकृतमें गमो सिद्धार्ण' ऐसा सिद्ध होता है।
जो भव्यजीव प्रकारांतरसे इस सिद्धपक्का जप करते हैं वे समस्त सिद्धियोंको प्राप्त होते हैं। लिखा।
चरwirew
पचासागर । ३९२)
a
R
। वर्णद्वयं श्रुतस्कंधे सारभूतं शिवप्रदम्। ध्यायेज्जन्मोद्भवाशेषक्लेशविध्वंसनक्षमम् ।।
अर्थात्-सिद्ध यह दो अक्षरका मन्त्र है। समस्त द्वादशांगका सार है। शिव अर्थात् कल्याण वा मोक्ष देशाता है। ऐसे शियो का बह शम्चको जो ध्यान करते हैं वे लोग बहुत शोघ्र अपने जन्म-जन्माम तरके पापोंको नष्ट कर देते हैं।
अहं शम्ब पहले अरहन्त शाब्दमें भी कह आये हैं और अब फिर कहा है। इसका अभिप्राय यह है कि अहं यह बोजाक्षर अरहन्तका भी वाधक है और सिद्धका भी वाचक है । लिखा भी है
सिद्धचक्रस्य सदीजं सर्वतः प्रणमाम्यहम् । इस प्रकार यह सिद्धपद सिद्ध होता है।
इस संसारमें बहुतसे अन्यमतवाले इस सिद्ध शब्दका अर्थ नवनाथ वा चौर सिद्ध कहते हैं तथा वे! रात-दिन निरन्तर इस मध्यलोकके आकाशमें परिभ्रमण करते रहते हैं। जो लोग परस्पर शुभ वा अशुभ की बात कहते हैं उनके लिये 'तथास्तु' ऐसा हो हो, इस प्रकार कहते चले आ रहे हैं ऐसे चौरासी सिद्ध बतलाते । ॥ है सो सब मिथ्या हैं क्योंकि सिद्ध होनेपर भी जिसको इतना करना बाकी रहा यह सिद्ध नहीं हो सकता।
सिद्ध तो वे ही हैं जिनका स्वरूप ऊपर लिखा है। बाकी सब मिथ्या है। 1 णमो सिद्धार्ण' के बाद णमो आइरिमाण पत्र है। यह प्राकृत भाषाका है इसका संस्कृतमें आचार्य बनता है। इसका पहला अक्षर 'आ' है इसका अर्थ सूर्य और मर्यादा है। सो यहाँपर मर्यादा अर्थ लेना चाहिये और मर्यादाका अर्थ प्रमाण होता है। उसके 'चार्य' है जो चर धातुसे बना है। घर धातुका अर्थ रक्षण और पति है अथवा चर धातुका अर्थ गति और भक्षण है। सो प्रकरणवश यहाँ पर धातुका अर्थ गति लेना चाहिये । आ पूर्वक चर धातुसे आचार्य शब्द बना है। जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और बोर्य इन पांच
S-SATA-THE-TRA
-RSHARELIPED