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________________ चर्चासागर [१९] समाधान-इस पंचमकालमें वर्तमान समयमें होनेवाले मुनियों की स्थिति श्रीमंदिरजीमें बतलाई है। यह बात श्रीपाननंदी पंचविशतिकाके छठे अधिकारमें लिखी है। संप्रत्यत्र कलो काले जिनगेहे मुनिस्थितिः । धर्मस्य दानमित्येषां श्रायका मूलकारणम्॥ ६ ॥ धर्मका दान देनेके लिए एक श्रावक ही मूल कारण है। भावार्थ-इस वर्तमान समयमें श्रावक ही धर्म सुननेके पात्र हैं इसलिये मुनिराजोंकी स्थिति जिनालयमें होनेसे ही श्रावकको लाभ पहुंच सकता है। श्रीइन्द्रनंदिने नीतिसारमें भी लिखा है। काले कलौ वने वासो वर्जनीयो मुनीश्वरैः । स्थीयेत च जिनागारग्रामादिषु विशेषतः ॥१६॥ २०-चर्चा बीसवीं प्रश्न-मुनिराज आहारके समय दोनों हाथोंकी अँगुलियोंमें आंट देकर दोनों हाथ मिला लेते हैं तब अन्न-जल आदिका ग्रहण करते हैं । यदि वह दोनों मिले हुए हाथ छूट जायें तो वे अन्तराय मान कर आहारका त्याग कर देते हैं सो इसका क्या कारण है ? समाधान-मुनिराज सदा यम नियम पालन करते रहते हैं अत एव आहारके समय जो अन्न-जल ग्रहण करते हैं वह भी नियम पूर्वक ही ग्रहण करते हैं । भावार्थ-उस समय भी उनके यह नियम रहता है कि जबतक दोनों हाथोंका संयोग है तबतक आहार ग्रहण करेंगे । हाथोंके छूट जानेपर आहारका त्याग कर देंगे। पद्मनन्दिपंचविंशतिकाके पहले अधिकारमें लिखा भी है। १. कलिकालमें मुनियों की स्थिति जिनालयमें हो है। २. कलिकालमें मुनियोंको बनमें निवास नहीं करना चाहिए किन्तु जिना__ लयमें वा गांव में रहना चाहिये । आजकल बहतसे लोग मुनियोंके जिनालयमें निवास करनेपर नुक्ताचीनो करते है परंतु यह उनकी भूल है जब शास्त्रों में स्पष्ट आता है तब इसमें शंका करना व्यर्थ है।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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