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________________ सागर २८२ ] किस-किस प्रत्ययसे, किस-किस संधि और विभक्तिसे बना है। इसका क्या अर्थ है तथा क्या फल है सो इन सबका स्वरूप समझना चाहिये । समाधान -- यह प्रश्न बड़े धर्मात्मा भव्यजीवोंका है। क्योंकि यह णमोकार मंत्र जीवोंको संसाररूपी समुद्रसे पार करनेवाला है । उसका स्वरूप रुचिसे पूछना अहोभाग्य है। संसार में वह जीव धन्य है जो मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदनासे इस णमोकार मन्त्रका निरन्तर जाप करता है या इसके स्वरूपका निरन्तर चिन्तवन करता है, अभ्यास करता है। वही जीव संसाररूपी वनको छेद कर मोक्ष गतिको प्राप्त होता है । इसलिए इसकी और श्रद्धा लिए अरे उसका स्वरूप पूछता है वह भी धन्य है । आगे इसका थोड़ा-सा स्वरूप शास्त्रोंके अनुसार अपनो भक्तिसे लिखा जाता है। यह पंच णमोकार मन्त्र अनादिनिधन है । इसका कोई कर्ता नहीं है । यह अनादिकालसे स्वयं सिद्ध चला आ रहा है । कालाप व्याकरणका पहला सूत्र है- 'सिद्धो वर्णसमाम्नाय :' अर्थात् वर्णोका समुदाय सब स्वयंसिद्ध है। अकारसे लेकर ह् तकके अक्षरोंको वर्ण कहते हैं-वे ये हैं। अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ लू ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह ळ क्ष । ये सब अक्षर स्वाभाविक हैं इन्हीं अक्षरोंके द्वारा द्वादशांग की रचना हुई है। यह भी अनादिनिधन है और परम्परासे बराबर चली आ रही है। ओ और गमो अरहंताणं इत्यादि द्वादशांगका मूल है। सो भी अनादिनिधन है । इनका विशेष और सम्पूर्ण स्वरूप तो श्रीसर्वज्ञदेव ही जानते हैं । अथवा गणधराविक उत्तरोत्तर ऋद्धिधारी छन्दमयी णमोकारकल्प मुनि जानते हैं। परन्तु इस समय जैनशास्त्रों में बारह हजार प्रमाण प्राकृत, घत्ता, नामका सिद्धांत शास्त्र है उसमें इसका स्वरूप बहुत अच्छी तरह बतलाया है। विशेष ज्ञानियोंको वहाँसे जान लेना चाहिये। यह हम अपनी छोटी-सी बुद्धिके अनुसार थोड़ा-सा लिखते हैं वह भव्य जीवोंको विचार लेना चाहिये । मूलमन्त्र यह है । णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं ॥ इसका अर्थ यह है-- अरहन्तोंको नमस्कार हो, सिद्धोंको नमस्कार हो, आवायको नमस्कार हो, [ ८
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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