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________________ सागर [ ३८१ ] प्रश्न -- इस वृक्षमें कौन-कौन गुण हैं ? उत्तर-- इसमें अनेक गुण हैं। निघंटुमें लिखा है- सपर्णी त्रिदोषी सुरभी दापिनी परम् । अर्थात् सप्तपर्ण वृक्ष, वात, पिस, कफ इन तीनों दोषोंको नाश करनेवाला है । बहुत ही सुगन्धित है और दीपन, पाचन है । इसके पत्ते बहुत ही सुगन्धित हैं और सात पत्तोंके आकारके, छत्रके आकार के समान बहुत ही सुशोभित होते हैं। ऐसा स्पष्ट अर्थ है । प्रश्न --- दाड़िम, नारंगी, केला, नोबू, बिजोरे, सुपारी, नारियल आदि अत्यन्त शोभायमान वृक्ष क्यों नहीं बतलाये । सप्तच्छवका ही वन क्यों कहा ? उत्तर- इस जम्बूद्वीपमें अनादिनिधन जम्बूवृक्षको वैश्यवृक्ष बतलाया है। तथा धातकी द्वीपमें धातकी बा आवडावा पाय वृक्षको चैत्यवृक्ष बतलाया है । तथा पुष्कर द्वीपमें शाभला, शीमला अथवा शाल्मलि वृक्षको चैत्यवृक्ष कहा है । सो यहाँ भो क्या आप लोग सर्क करेंगे ? कि अच्छे वृक्ष क्यों नहीं बतलाये ? अनावि निधन रचना जैसी है वैसी हो शास्त्रों में कही है । उसमें सन्देह नहीं करना चाहिये। जो लिखा है उसमें ही प्रमाण मानना चाहिये । यही कथन अकृत्रिम जिनमन्दिरोंकी शोभामें अशोक, आन्न, चम्पक, सप्तच्छद आदि की शोभाका वर्णन है। वह भी विवेकी पुरुषोंको शास्त्रोंसे जान लेना चाहिये । २०४ - चर्चा दोसौ चारवीं प्रश्न --- श्रीपंचणमोकार मंत्र द्वादशांगका मूल है, पैंतीस अक्षरमयी है, उसके अपनेसे करोड़ों जन्मोंके महापाप कट जाते हैं। अनेक प्रकारके विघ्न जाल मिट जाते हैं। संसार में सार पदार्थ एक यही है। इस महामन्त्र के प्रसादसे अनेक जीवोंने स्वर्ग मोक्ष प्राप्त किया है इसकी महिमा अपार है। इसकी महिमा जैनशास्त्रोंमें अनेक जीवोंकी कथाओं सहित लिखी है। इसको मन्त्रराज कहते हैं। यह अपराजित मन्त्र है । समस्त पापको नाश करनेवाला है । समस्त मंगलों में प्रथम मंगलमय है । इस प्रकार अनेक महिमाओंमें सुशोभित यह पंच नमस्कार मन्त्र है । सो इसके पर्वोंके अक्षरोंकी रचनाका स्वरूप क्या है। इसमें कौन-कौन सेव हैं यह मन्त्र किस-किस धातु [ ३
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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