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वर्षासागर
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करनेसे उसकी शुद्धि होती है यदि कोई दूत्र पीने वाला बालक दूध पीनेके लिये उसका स्पर्श करे तो जलके छोटे देने मात्रसे हो उसको शुद्धि हो जाती है । ऐसे छोटे बालकको स्नान करनेका अधिकार नहीं है। सो हो त्रिवर्णाचारमें लिखा है
तयासह तद्वालस्तु व्यष्ट स्नानेन शुद्धयति । तां स्पर्शन् स्तनपायी वा प्रोक्षणे नैवशुद्धयति ॥ कदाचित् कोई यहाँपर छोटा वेनेका सन्देह करे तो इसका उत्तर यह है कि प्रायश्चित शास्त्रों में और भी कितने ही पदार्थ बतलाये है जिनमें स्पर्शका दोष नहीं माना जाता । जैसे-मक्खी, हवा, गाय, सुवर्ण, अग्नि, महानदी, नाव, पाथोवक और सिंहासन अस्पश्यं नहीं होते ऐसा विद्वानोंका कहना है-मक्षिका मारुतो गावः स्वर्णमग्निमहानदी । नात्रः पाथोदकं पीठं नास्पृश्यं चोच्यते बुधैः ॥ १६२ - चर्चा एकसौ बानवेवीं
प्रश्न – ऊपर लिखे अनुसार गृहस्थका यथायोग्य आचरण तो मालूम हुआ परन्तु यदि रजस्वला स्त्री रोगिणी हो, अशक्त हो उसको स्नानाविक किस प्रकार कराना चाहिए ।
समाधान---यदि कोई स्त्री किसी रोग वा शोकसे अशक्त हो वा बुढ़ापेले अशक्त हो और वह रजस्वला हो जाय तो उसकी शुद्धि इस प्रकार करना चाहिये कि चौथे दिन कोई निरोग सशक्त स्त्रो उसे स्पर्श करे फिर स्नान करे, फिर स्पर्श करे, फिर स्नान करे। इस प्रकार वह दस बार उसको स्पर्श करे तो वह स्त्री शुद्ध हो जाती है । अन्तमें रजस्वलाके वस्त्रोंको बदलवा कर बस वर बारह आधमन कर तथा स्नान कर लेनेसे वह नीरोग स्त्री भी शुद्ध हो जाती है रोगिगी रजस्वला स्त्रीको शुद्धिका यह क्रम है। सो हो त्रिवर्णाचार में लिखा हैआतुरे तु समुत्पन्ने दशवारमनातुरा । स्नात्वा स्नात्वा स्पर्शेदेनामातुरा शुद्धि माप्नुयात् ॥ जराभिभूता या नारी रजसा चेत्परिप्लुता । कथं तस्य भवच्छौच्यं शुद्धिः स्यात्केन कर्मणा ॥ चतुर्थेनि संप्राप्ते स्पर्शेदन्या तु तां स्त्रियम् । सा च सचैव प्राह्मा यः स्पर्शेस्नात्वा पुनः पुनः। दश द्वादश वा कृत्वा ह्याचमनं पुनः पुनः । अन्स्ये च वासमां त्यागं स्नात्वा शुद्धा भवेत्तु सा ॥ १६३ - चर्चा एकसौ तिरानवेवीं
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प्रश्न- - सोलह स्वर्गके ऊपर नो प्रेवेयक, मौ अनुविश और पांच पंचोत्तर विमान बतलाये हैं सोनो
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