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________________ चर्चा सागर [ १७ ] त्रिःपरीत्य तदा स्थानं प्रविश्य देवनायकाः । भूमौ संस्थाप्य पञ्चांगान् प्रणेमुः शिरसा जिनम् ॥ ५८ ॥ १६- चर्चा सोलहवीं प्रश्न -- सामान्यकेच लोके गंधकुटीमें गणधर होते हैं या नहीं ? समाधान -- सामान्यकेवलीके भी गणधर होते हैं । यह बात सुदर्शनचरित्रके आठवें परिच्छेदनं लिखी है दिव्येन ध्वनिना देवस्तदा सन्मार्गवृत्तये । धर्मतत्वादिविश्वार्थानुवाचेति गणान्प्रति ॥७७॥ बिना गणधरोंके विव्यध्वनि नहीं खिरती है, इसलिये जिस प्रकार श्रीमहावीर स्वामीके गौतम गणधर थे उसी सहारा भी होते हैं । १७- चर्चा सत्रहवीं प्रश्न -- सामान्यकेवली भगवान्‌को गंधकुटीमें मानस्तंभ होता है या नहीं ? तीर्थंकर केवली भगवान् के समवशरणमें होता ही है । समाधान -- सामान्यकेवली भगवान् की गंधकुटीमें भी मानस्तम्भ होता है। यह बात सुदर्शन चरित्रमें लिखी हैआदौ शक्रोपदेशेन हेमरत्नादिराशिभिः । रदे गंधकुटीरूपं कैवल्यास्थानमंडनम् ॥५२॥ १. सेठ सुदर्शनको जब केवलज्ञान हुआ और गंधकुटो रची गई तब इन्द्रोंने उस स्थानको तीन प्रदक्षिणा देकर अपने शरोरके पाँचों अंग भूमिसे लगाकर मस्तक झुकाकर प्रणाम किया । २. भगवान् सुदर्शन केवलोने मोक्षमार्गकी प्रवृत्ति बढ़ानेके लिये गणधरोंके प्रति दिव्यध्वनिके द्वारा धर्मका तथा समस्त तत्त्वोंका स्वरूप बतलाया । ३. श्री ऋषभदेवकी दिव्यध्वनि सबसे पहले बिना गणधरोंके खिरी है परन्तु यह हुण्डावसर्पिणीका दोष समझना चाहिये । ४. सेठ सुदर्शनको केवलज्ञान उत्पन्न होनेपर कुबेरने इन्द्रकी आज्ञासे सुवर्ण रत्न आदिके द्वारा गंधकुटोरूप केवलो भगवान्का सभा स्थान बनाया जिसमें ध्वजा, सिंहासन, छत्र, चमर आदि सब शास्त्रोक्त रचना थी तथा वह मानस्तंभ से सुशोभित था. इस प्रकार कुबेरने संसार के प्राणियोंका उपकार करनेके लिये केवली भगवान्का सभा स्थान बनाया । ३ [
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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