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सागर १६ ]
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। किसका सेवन करें क्योंकि भोगोपभोगका त्याग तो इनके पहलेसे ही हो जाता है तथा केवली भगवान्के कवलाहार आदिकी संभावना ही नहीं है अतएव उनके लब्धियोंका कार्य क्या होता है ?
समाधान-केवली भगवान् जो धर्मोपदेश देते हैं वह उनका क्षायिकशान है। शरीरको स्पितिके लिये जो परम शुभ कार्माण वर्गणायें प्रतिसमय आती रहती हैं वह उनका क्षायिक लाभ है । वेवगण जो सदा पुष्पवृष्टि करते रहते हैं वह उनका भोग है तथा समवशरणको बारह सभा छत्र-सिंहासन आदि क्षायिक उपभोग हैं ऐसा सुदर्शनचरित्रके आठवें परिच्छेउमें लिखा हैप्रादुरासीज्जगत्पूज्यं लोकालोकप्रदोपकम् । परमं केवलज्ञानं मुक्ति श्रीमुखदर्पणम् ॥४३॥ प्रादुरासंस्तथास्येमा नवकेवललब्धयः। विश्वभव्यहिताः सर्वाः साधारणबुधार्चिताः ॥१४॥
अनंतदर्शनं ज्ञानं दानं धर्मोपदेशकृत्। लाभः पुण्याणुलाभोऽथ भोगः पुष्पादिवृष्टिजः ॥ ४५ ॥ उपभोगः सभास्थानसिंहासनादिको महान् । अन्तातीतमहद्वीयं सम्यक्त्वं क्षायिकं परम् ॥ ४६ ॥ यथाख्याताह्वयं सारं चारित्रं शशिनिर्मलम् । नवेमाः परमास्तस्य जाताः केवललब्धयः॥ १७॥
१५-चर्चा पन्द्रहवीं प्रश्न-सामान्य केवलोके लिए नमस्कार किस प्रकार करना चाहिये ?
समाधान--सामान्यकेवलो के लिये इन्द्र पंचांग नमस्कार करते हैं । यही बात सुवनिष्ठिचारित्र के आठवें परिच्छेदमें लिखा है--
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-मरामना
१. इनका अर्थ इनके ऊपर लिखे हुए समाधान के अनुसार है।