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समयका अतिक्रम हो जाय तो उसका प्रायश्चित्त प्रतिक्रमणपूर्वक एक उपवास है। यदि कोई मुनि तीन पक्ष
तक प्रतिक्रमण न करे तो उसका प्रायश्चित्त दो उपवास है। यदि कोई मुनि चातुर्मासिक प्रतिक्रमण न करे तो पर उसका प्रायश्चित्त आठ उपवास है। यदि कोई मुनि वार्षिक प्रतिक्रमण न करे तो उसका प्रायश्चित्त चौबीस [ ३५३ ) उपवास है । सो ही लिखा है
वंदणग्गह णियम विरहि उपवासो होइकाल छिण्णेवा ।
तह सज्झाव चउक्के काउसम्गो अवलाए । ते हि अधिकं तु पक्खे चउमासे य जाण वासो य । सोवट्ठावण छेदो
यह षट् आवश्यकोंका प्रायश्चित्त बतलाया।
यदि कोई रोगो मुनि चार महीनेसे ऊपर केशलोंच करें तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है। यदि कोई रोगो मुनि एकवर्षसे ऊपर केवालोंच करें तो उसका प्रायश्चित्त तोन उपवास है। यदि कोई रोगो मुनि पाँच वर्षके ऊपर केशलोंच करे तो उसका प्रायश्चित्त पंचकल्याणक है । यदि कोई नौरोग मुनि चार महीने बाद वा एकवर्ष बाद वा पांच वर्ष बाद केशलोंच फरे तो उसका प्रायश्चित्त निरन्तर पंचकल्याणक प्रायश्चित्त है । सो ही लिखा हैचउम सिय वरसिय जुगं तरे चेव मदि चोर। उपवास छट्ठ मासिय गिलाण इदरे च णर वादं॥
यह केशलोंच मूलगुणका प्रायश्चित्त है ।
यदि कोई मुनि किसीके उपसर्गसे वस्त्र ओढ़ लें तो उसका प्रायश्चिस एक उपवास है। यदि कोई मुनि व्याधिके वश होकर वस्त्र ओढ़ लें तो उसका प्रायश्चित्त तोन उपवास है। यदि कोई मुनि अपने दर्पसे अहङ्कारवश होकर वस्त्र ओढ़ लें तो उसका प्रायश्चित्त पंचकल्याणक है। इनके सिवाय अन्य किसी कारणसे वस्त्र ओढ़ लें तो महानत भंग होता है। सो ही लिखा हैउवसग्गवाहिकरणे दप्पेण चेलभंग करणे हि ।
उपवास छट्ठ मासिय कमेण मूलं च होइ सयं ।। इस प्रकार वस्त्र त्याग मूलगुणका प्रायश्चित है।
नियामचलायामाचा