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बासागर ३१]
पदि कोई मुनि टेढ़े मार्गको एक कोससे कम प्रासुक भूमिमें गमन करें तो उसका प्रायश्चित्त एक कापसा यदि किसी वासी एक कोस अप्रासुक भूमिमें गमन करें तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है। यदि कोई मुनि वर्षाकालमें तीन कोस तक प्रासुक भूमिमें गमन करे तो एक उपवास प्रायश्चित्त करें। यदि वर्षाकालमें दिनमें दो कोस अप्रासुक मार्गमें गमन करें तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है। यदि कोई मुनि वर्षाकालमें रात्रि एक कोस गमन करें तो उसका प्रायश्चित्त वा वण्ड धार उपवास हैं। यदि र शीतकालमें दिनमें प्रासुक भूमिपर छ: कोस तक कोई मुमि चलें तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है। यदि शोतकालमें दिनमें अप्रासक भमिपर छः कोश तक चलें तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है। यदि
क मागसे चार कोस तक चले तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है। यदि गर्मीके दिनोंमें नौ कोस तक प्रासक भमिमें गमन करें तो उसका प्रायश्चित एक उपवास है। यवि गर्मीके f । भूमिमें छः कोस तक चले तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है । र्याद गर्मीमें रातमें अप्रासुफ मार्गसे छः कोस ॥ तक चले तो उसका प्रायश्चित्त दो उपवास है।
यदि मुनि बिना पोछीके सात पॅड तक चले तो उसका प्रायश्चित्त एक कायोत्सर्ग है। यदि बिना पोछोके एक कोस तक गमन करें तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है ।
यदि मुनि घुटने तक पानी में होकर गमन करे तो उसका प्रायश्चित एक कायोत्सर्ग है। यदि घुटनेसे चार अंगुल ऊपर तक पानी में गमन करें तो एक उपवास प्रायश्चित्त है। फिर आगे प्रति चार अंगुल पर दूनेने उपवास प्रायश्चित्त है । सो ही लिखा है
वियायामगमण मुणिणो उमग्गो पासुगो असुद्धं । काउस्सग्गो खमणं अपुण्णकोसं हि दायत्वं ॥ वासरते दिव वसो पासुगा य गर्छ हि पदरगा। दिष्चति यद्ग कोसे एगोगां तिणि चड खमणं ॥ लहमे तेहिय दिवसो पातुय गच्छं हि पदरगा। दिच्चति पदुगे कोसे एगोगां वे णित्तिय खमणं ॥
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