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चर्चासागर [ १४६ ]
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तणवत्थाय विहंगम उरपरिसप्पाण जलचरवधेहिं । चोदसमोदिक्कादि उणवंत खमणाणि मलहरणं ॥
इस प्रकार अहिंसा नामक प्रथम महाव्रतका तथा अहिंसा उत्तरगुणका प्रायश्चित्त बतलाया । एक बार प्रत्यक्ष असत्य कहनेका प्रायश्चित्त एक कायोत्सर्ग है। एक बार परोक्ष असत्य कहनेका प्रायश्चित हो उपवास है। एक बार मन, वचन, कायसे असत्य कहनेका प्रायश्चित्त तीन उपवास है। अनेक बार प्रत्यक्ष कहनेका प्रायश्चित्त पंचकल्याणक है। अनेक बार परोक्ष असत्य भाषण करनेका प्रायश्चित्त पंचकल्याणक है। अनेक बार प्रत्ययान दिले हुए कत्य कहनेका प्रायश्चित्त पंचकल्याणक है । अनेक बार मन,
वचन, कायसे असत्य कहनेका प्रायश्चित्त पंचकल्याणक है। सो हो लिखा है
सइ पचक्ख परोक्खं उभयं तियकरण नोसमासीसे । काउस्सग्गुवबसो एशुत्तव असइसद्वाणं ॥
इस प्रकार असत्य त्याग महाव्रतका प्रायश्चित्त बतलाया । यहाँ पर बारह कायोत्सर्गका एक उपवास समझना चाहिये। चार प्रकारके आहारका त्यागरूप उपवास नहीं है ।
यदि मोहसे एकबार परोक्ष चोरी की जाय तो एक कायोत्सर्ग प्रायश्चित है। यदि एकबार प्रत्यक्ष चोरीको जाय तो एक उपवास प्रायश्चित्त है । यदि एकबार प्रत्यक्ष परोक्ष दोनों प्रकारको चोरी की जाय तो दो उपवास प्रायश्चित्त है । यदि एकबार मन, वचन, कायसे चोरी की जाय तो तीन उपवास प्रायश्चित है । यदि अनेक बार परोक्ष चोरी की जाय तो पंच कल्याणक प्रायश्चित्त है । यदि अनेक बार प्रत्यक्ष चोरोकी जाय तो पंच कल्याणक प्रायश्चित्त है । यदि अनेक बार मन, वचन, काय तीनोंसे छोरीको जाय तो पंचकल्याणक प्रायश्चित है । सो ही लिखा है-
सुद खुद सुणं हि समक्खेणाभोगे अदत्त गहिद म्हि । काउस्सग्गुववासा गुत्तर असइमा सिद्धं ॥ यहाँ भी बारह कायोत्सर्गका उपवास समझना चाहिये। इस प्रकार अचौर्य महाव्रतका प्रायश्चित्त
बतलाया ।
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