SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न- यदि किसी मुनिसे अनेक पंचेंद्रिय असैनी जीवोंका वष हो जाय तो उसे क्या प्रायश्चित्त लेना। पसायर उत्तर--यदि ऊपर लिखे आठ प्रकारके मुनियोंसे नौ प्राणोंको धारण करनेवाले असेनी पंचेंद्रिय घोषोंLaw का अनेक बार वध हो जाय तो उन्हें अनुक्रमसे नीचे लिखे अनुसार प्रायश्चित्त लेना चाहिये। पहलेको (स्थिर । मूलगुण चारित्रधारीको ) तीन उपवास, अस्थिर मूलगुणधारीको एक कल्याणक, प्रयत्नचारित्रमूल गुणधारोको वो लघु कल्याणक, अप्रयत्नचारित्र मूलगणवारीको तीन पंच कल्याणक इस प्रकार इनका प्रायश्चित्त समझ लेना। चाहिये। सो हो लिखा हैबहुवारेसु विच्छेदो छ? लहुमास मासियं मूलं । तिष्णुववासा छट्ट लहुगच्छट्ठाणमट्ठण्णं ॥ यदि उत्तरगुणको धारण करनेवाले साधु अपने प्रमावसे एकेंद्रियसे लेकर चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जीवोंके गमन आगमनको रोके तो एक कायोत्सर्ग करें। यदि वे असैनी पंचेंद्रियका गमनागमन रोके तो एक उपवास करें । यदि मूलगुण धारण करनेवाले साधु प्रमावसे एकेंद्रियसे लेकर चतुरिन्त्रिय पर्यन्त जीवोंके गमन आगमनको रोके तो एक कायोत्सप करें। यदि मूलर णधारो साधु अपने किसी अहंकारसे असैनी पंचेंद्रियका गमन आगमन । रोके तो वे सेरह उपवास करें। सो ही लिखा हैउत्तरमूलगुणीणं पमाददप्पं हि जाणमलहरणं । काओसग्गोवासो इंदियपाणेण गमणाए ॥ तथा जहाँ-जहाँपर प्रयत्नाचार वा अप्रत्यलाचारफे द्वारा एकेन्द्रिय पर्यन्त जीवोंका वा असेनी पंचेंद्रिय जीवोंका गमन-आगमन रुके तो एक कायोत्सर्ग करना चाहिये यदि ऐसे हो साधुओंसे सैनी पंनिय जीवोंका गमन-आगमन रुके तो बारह कायोत्सर्गका एफ उपवास करना चाहिये । सो ही लिखा है-- अहवा जतनाजतने इंदियगण्णाय पाणगण्णाय।काओस्सग्गो होति उववासा वारसा देहि। यवि फिसो मुनिसे प्रोधादिक कषायोंके वश होकर अपनी सामर्थ्य से तथा अशुभ कर्मके उदयसे अनेक अनयोका मूल ऐसा महापात हो जाय अर्थात् यद्यपि महामुनि समस्त जीवोंको रआ करनेवाले हैं, सब प्रकार को हिंसाका त्याग कर अहिंसा महाव्रतको धारण करनेवाले हैं तथापि यदि दैवयोगसे दुष्ट बुद्धिसे उनसे कोई । अनुचित बन जाय तो वे मुनि भारी बण्ड देनेके योग्य हैं । आगे उसी दण्डको अनुक्रमसे कहते हैं। यति मारने AMARHATRAPAINARASIMARATHAM
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy