SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्चासागर ३०९] है कि अकृत्रिम चैत्यालयों की प्रतिमाओंके दोनों ओर तथा नीचे सर्वाल्हाव और सनत्कुमार श्रादि बत्तीस-बत्तीस म यक्ष और श्रीदेवी तथा श्रुत देवता स्त्री मनुष्योंके आकारमें अनादि निधन विराजमान हैं। भावार्थ-प्रतिमा के दोनों ओर बत्तीस-बत्तीस यक्ष तो चमर दुला रहे हैं तथा श्रीदेवी वा लक्ष्मीदेवी और श्रुतदेवता वा सर. स्वती देवी वहीं पर विराजमान हैं। प्रतिमाजीके नीचे सल्हिाद और सनत्कुमार ये दोनों जिनभक्त यक्ष बैठे हैं। उनके आगे अष्ट मंगलद्रव्य रक्खे हैं । यथा दसतालमाणलक्खणभरिया पेक्खंत इव वंदंता वा । पुरुजिणतुगा पडिमा रयणमया अट्ट अहियसया ॥ ६७६ ॥ चमरकरणागजक्खग वत्तीसं मिहुणगेहि पुह जुत्ता । सिरसीए पत्तीए गम्भगिहे सुट्ट सोहंति ॥ ६७७ ।। सिरिदेवी सुहदेवी सव्वाण्ड्सणकुमारजक्खाणं। रूवाणिय जिणपासे मंगलमढविहमधि होदी ॥ ६७८ ॥ इस प्रकार त्रिलोकसारमें लिखा है । इसका अर्थ ऊपर लिखे अनुसार है। इसी प्रकार गोम्मटसारमें कर्मकांडके नौवें अधिकारको समाप्तिमें जहाँ समस्त ग्रन्थ पूर्ण होता है तया # शास्त्रको पूर्णता होती देख कर आचार्य श्रोनेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्तीको प्रतिज्ञा पूरी होती है वहाँपर अन्त । मंगल करते समय लिखा है कि पंचसंग्रह सूत्ररूप यह गोम्मटसार ग्रन्थ सदा जयशील हो । तथा गोम्मट नामके पर्वतके शिखरपर श्रीचामुण्डरायके किये हुये जिनालयमें श्रीगोम्मट जिन अर्थात् श्रीनेमिनाथ तीर्थङ्करको । एक हाथ प्रमाण ऊँची इंद्रनीलमणिको प्रतिमा विराजमान है वह सदा जयशील हो। इसी प्रकार जिस राजा चामुण्डरायने श्रोनेमिनायके जिनालयमें जो एक बहुत ऊँचा स्तम्भ खड़ा किया है तथा उसपर जो पक्षदेवको । मूर्ति स्थापित की है जिसके मृफुटके अग्रभागसे निकलती हुई किरणरूपो जलसे सिद्धपरमेष्ठीके आत्मप्रवेशोंके । आकारस्वरूप दोनों शुद्ध चरण धोये जाते हैं ऐसा वह राजा चामुण्डराय सदा जयशील हो । यहाँपर जो यक्षके । मुकुटकी किरणोंसे सिद्धपरमेष्ठीके चरण धोये आनेको बात लिखी है सो केवल उपमामात्र है उस खम्भेकी
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy