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________________ पर्यासागर [३०७) इसका अर्थ विचार लेना चाहिए । और देखो भरत आदि पक्रवतियोंकी आयुधशालामें जब धक आयुष प्रगट हुमा सब उन्होंने उसको पूजा की सो यह कथन प्रसिद्ध हो है । इन बारह चक्रवतियोंमेंसे आठ चक्रवर्ती तो उसी भवसे मोक्ष गए और दो स्वर्गमें मर । ये सब सम्यम्वृष्टो थे । इनके सिवाय दिग्विजय करनेके लिए जब चक्रवर्ती निकलते हैं तब समाके किनारे जाकर यक्षको वश करनेके लिये वाभके आसन पर बैठकर तेला (तोन उपवास ) धारण करते हैं यह सब चक्रवतियोंको रोति है । श्रीमत् आदिपुराणके उनचालीसवें पर्वमें लिखा है कि तीर्थदूरोंके सिवाय विश्वेश्वरादिक और भी देव है जो शान्तिके करने वाले हैं। इन विश्वेश्वरादिकके सिवाय मांसाहारी क्रूर वेव और भी हैं सो उनका त्याग कर देना चाहिये अर्थात् उनको नमस्कार, पूजन आदि नहीं करना चाहिये ऐसा लिखा है यथा-- विश्वेश्वरादयो ज्ञेया देवता शांतिहेतवः । ऋरास्तु देवताः हेयाः येषां स्याद् वृत्तिरामिशैः ।। इससे मालूम होता है कि शान्ति करनेके लिये सीर्थंकरोंके सिवाय और भी देव हैं। छयालीसवीं लियाका वर्णन करते समय लिखा है कि नौ निधि और चौदह रत्नोंकी पूजन कर फिर चकका महोत्सव किया। यथा--- संपूज्य निधिरत्नानि कृतचक्रमहोत्सवः । दखा किमिच्छिकंदानं मान्याः संमान्य पार्थिवाः ॥ २३६ ॥ . यथावदभिषिक्तस्य तिरीटारोपणं ततः। क्रियते पार्थिवैः मुख्यैश्चतुर्भिः प्रथितान्वयैः ॥२३७॥ इस प्रकार महापुरुषोंने भी किया फिर हमारे तुम्हारे समान श्रद्धानियोंको तो बात हो क्या है ? दूसरे लघु पद्मपुराणमें भगवान मुनिसुव्रत तीर्थकरके जन्माभिषेकके समय लिखा है कि “इन्द्रने मेरु पर्वतपर अभिषेक करते समय पहले वश विपालोंको तया लोकपालोंको स्थापन किया, अर्घ देकर उनका पूजन, किया और फिर पांचवें क्षीरसागरका जल लाकर भगवानका अभिषेक किया । यथा
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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